SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 591
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६० पूजा-संग्रह। ____ त्रोटक ॥ आविया सुरपति सर्व भगते कलश श्रेणि बणावए । सिद्धार्थ पमुहा तीर्थ औषधि सब वस्त अणावए । अच्च्यपति तिहां हकम कीनो देव कोड़ा कोडिनें। जिन मजनारथे नीर लाओ सबै सुर कर जोडिनें ॥ ( जलका कलश लेकर खड़े रहैं और पढ़ें) ॥ शांतिने कारण इन्द्र कलशा भरै ए देशी ॥ ढाल ॥ आत्म साधन रसी देवकोड़ी हसी। उल्लसीने धसीखीर सागरदिशी॥पउमदह आदि दह गंग पमुहा नई। तीर्थ जल अमल लेवा भणी ते गई ॥ जाति अड़ कलश करि सहस अठोत्तरा । छत्र चामर सिंहासणे शुभतरा ॥ उपगरण पुप्फ चंगेरि पमुहा सवें । आगमें भासिया तेम आणि ठवें ॥ तीर्थ जल भरिय करि कलश करि देवता । गावता भावता धर्म उन्नति रता ॥ तिरिय नर अमरने हर्ष उपजावता । धन्य श्रम शक्ति शुचि भक्ति इम भावता ॥ समकितै बीज निज आत्म आरोपता । कलश पाणी मिसै For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy