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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय-रत्नसार । ५५६ त्रोटक ॥वधाविया जिनवर हर्ष बहुलै धन्य हूं कृत पुण्य ए। त्रैलोक्य नायक देव दौठो मुझ समो कुण अन्य ए ॥ हे जगत जननी पुत्र तुमचो मेरु मजन वर करी। उच्छंग तुमचै बलिय थापिस आतमां पुन्ये भरी॥ ढाल ॥ सर नायकजी, जिन निज कर कमलैं ठब्या। पांचरूपेजी, अतिशय महिमायें स्तव्या । नाटक विध जी, तव बत्तीस आगल बहै। सुर कोड़ी जी, जिन दरशनणे ऊमहै। त्रोटक ॥ सुर कोड़ कोड़ी नाचती वलि नाथ शुचि गुण गावती। अपछरा कोड़ी हाथ जोड़ी हाव भाव दिखावती ॥ जय जयो तूं जिनराज जग गुरु एम दे आसोस ए । अम त्राण शरण आधार जीवन एक तूं जगदीश ए॥ ___ढाल ॥ सुर गिरवरजी, पांडुक वनमें चिहुं दिसैं । गिरि शिल पर जी, सिंहासन सासय वसे॥ तिहां आणीजो, शक्रे जिन खोले ग्रह्या । चउसटें जी, तिहां सुरपति आवी रह्या ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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