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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार ५५३ चोवीस, पूजोरे चोवीस, सोभागी चोवीस, वैरा गी चोवीस जिणंदा ॥ कुसुमांजलि मेलो श्री वीर जिणंदा ॥ ( यह पढ़कर मस्तक पर तिलक करना चाहिये ) ॥ ५ ॥ ॥ इति पांखडी गाथा ॥ वस्तु ॥ सयल जिनवर सयल जिनवर नमिय मन रंग । कल्लाणक विह संथविय । करिय सुजम्म सुपवित्त सुन्दर । सय इक सत्तरि तित्थंकर । इक sa स विहरंत महियल । चवण समैं इकवीस जिए । जन्म समैं एकवीस । भत्तिय भावें प्रजिया । करो संघ सुजगीस ॥ १ ॥ ; इक दिन भव तीजे समकित गुण रम्या । जिन भक्तिप्रमुख गुण परिणम्या || तजि इन्द्रिय सुख संसना | करि थानक वीसनी सेवना ॥ अतिराग प्रशस्त प्रभावता । मन भावना एहवी भावता ॥ सवि जीव करू शासन रसी । इसी भाव दया मन उल्लसी ॥ लहि परिणाम एहवं ક राहुलरावती - ए देशी ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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