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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार । ४७७ गज लांछन प्रभुजीने जांण, अमृत सम जसु मीठी वाण ॥६॥ अनुक्रम प्रभुजी शिखरसमेत, गिरवर पर आव्या निज हेत । सहस मुनिवरने परिवार, मासखमण अणस कर सार ॥ १० ॥ चैत्री सुदि पूनमने दिने, मुक्ति गये प्रभु तीरथ इणे इो । भूचर खेचर किन्नर सुरी, इन्द्रादिक सहु उच्छव करी ॥ ११ ॥ थाप्यो तीरथ मोटोमही, अठाइ महोच्छव कियो सही । ए तोरथनी जात्रा करे, ते भवियण अक्षयसुख वरे ॥ १२ ॥ दूहा || श्रीसंभव जिनराज जी, गए इहां निर्वाण | शिखरसमेत सुहामणो, प्रगट्यो तीरथ जां ॥ १ ॥ दूसरी ढाल - सुगण सनेही साजन श्रीसीमंधर स्वाम-ए देशी । सावत्थीनगरी भरी धन संपद बहु थोक, जैतारि नृप राज करै सुखिया सब लोक । सेनाराणी मीठी वाणी गुणनी खाण, जेहने श्री संभव जनम्या सकल सुजाण ॥ १ ॥ कंचनवरण सुत For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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