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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ सम्मेत शिखरजीका रास। सहु गुणनी खाण ॥ २॥ जसु इन्द्रादिक सेवा करे, इन्द्राणी अति उच्छव धरे । तीर्थकरनी पदवी लही, अंतर अरि जिण साध्या सही ॥३॥ अनुक्रम इम भोगवतां भोग, पुन्य प्रसाद मिल्यो सहु जोग । अवसर दे संवत्सरी दान, संजम लीनो आप सुजाण ॥ ४ ॥ कम खपावी पांम्यो, ज्ञान, केवलदर्शन लह्यो प्रधान । विचरे पुहवीमंडलमांहि, भव्यजीव प्रतिबोधन ताहि ॥ ५ ॥ सिंहसेनादिक गणधर भया, पंचाणवे संख्या सहु थया । एक लाख मुनिवर परिवस्था, श्रावक श्रावकणी सहु कस्या ॥ ६ ॥ तीन लास्त्र वलि तीस हजार, साधवियां जाणो सुविचार ॥ श्रावक सहस अहाण सही, दोय लाव संख्या गहगही ॥७॥ पांच लाख पंतालीस हजार, श्रावकणी संख्या सुविचार । बहुत्तर लाख पूरबनो प्राय, कंचनवरण सरीर सुहाय ॥८॥ साढीच्यारसे धनुष सरीर, मान लह्यो प्रभु गुण गंभीर । For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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