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स्तवन-संग्रह। दोख, तिहां केवल उपजे ए॥ आप कनें अण्णहुंत, गोयम दीजें दान इम ॥ गुरु ऊपर गुरु भक्ति, सामी गोयम ऊपनिय ॥'अणचल केवल नाण, रागज राखे रंग भरे ॥ २४ ॥ जो अष्टापद सेल, वंदे चढ चउवीस जिण ॥ आतम लब्धि वसेण, चरम सरीरी सोज मुनि ॥ इय देस णा निसुणेह, गोयम गणहर संचयि ॥ तापस परसएण, जो मुनि दीठो आवतो ए॥ २५ ॥ तपसो सियनिय अंग, अह्मां सगति न ऊपजे ए ॥ किम चढसे दृढ काय, गज जिम दीसे गा जतो ए ॥ गिरो ए अभिमान, तापस जो मन चिन्तवे ए ॥ तो मनि चढियो वेग, आलंबवि दिनकर किरण ॥ २६ ॥ कंचण मणि निप्पन्न, दंड कलस ध्वज वड सहिय ॥ पेखवि परमाणंद, जिणहर भरतेसर महिय ॥ निय निय काय प्रमाण, चिहुं दिसि संठिय जिणह बिंब ॥ पणमवि मन उल्लास, गोयम गणहर तिहां वसिय ॥२७॥
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