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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवन-संग्रह। आतम अरपण वस्तु विचारतां, मरम टलै मति दोय ॥ सु०॥ परम पदारथ संपति संपजै, आनंदधन रस पोष ॥ सु० सुम०॥ ६॥ ॥श्रीशीतलनाथजी का स्तवन ॥ ॥ गुणह विसाला मंगलीक माला ॥ ए चाल ॥ ॥ शीतल जिनपति ललित त्रिभंगी, विविध भंगी मन मोहे रे ।। करुणा कोमलता तीक्षणता, उदासीनता सोहे रे ॥शी० ॥१॥ सर्व जंतु हितकरणी करुणा, कर्म विदारण तीनणा रे ॥ हाना दाना रहित परणामी, उदासीनता विक्षणा रे॥ शी० ॥ २॥ परदुःख छेदन इच्छा करुणा, तीक्षण परदुख रीझे रे॥ उदासीनता उभय विलक्षण, एक ठांमे केम सीझे रे ॥ शी० ॥३॥ अभयदान ते मल क्षय करुणा, तीक्षणता गुण भावे रे। प्रेरण विण कृत उदासीनता, इम विरोध मति नावे रे ॥ शी० ॥४॥ शक्ति व्यक्ति त्रिभुवन प्रभुता, निग्रन्थता संयोगे रे॥ योगी भोगी वक्ता For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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