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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार। ३२६ ॥ श्रीसुमतीनाथ स्वामी का स्तवन ॥ - ॥ गग वसंत तथा केदारा॥ ॥ समति चरण पंकज प्रातम अरपणा. दरपण जिम अविकार सुग्यानी ॥ मति तरपण बहु सम्मत जांणिये, परि सरपण सुविचार ॥ सुग्यानी सु० ॥१॥ त्रिविध सकल तनु धर गत आत मा, बहिरातम धुरि भेद ॥ सु० ॥ बीजो अंतर आतम तीसरो, परमातम अविच्छ द ॥ सु० सु० ॥२॥ आतम बुद्धे हो कायादिक ग्रह्यो, बहिरातम अघ रूप ॥ सुग्यानी ॥ कायादिकनो हो सा खीधर रह्यो, अंतर आतम रूप ॥ सुग्यानी ॥ सु० ॥३॥ ज्ञानानंदे हो पूरण पावनो, वरजित सकल उपाधि सुम्यानी ॥ अतिंद्रिय गुण गण मणि आगरू, इय परमातम साध सुग्यानी ॥ सुम० ॥ ४॥ बहिरातम तज अंतरातमा, रूप सुग्या नी थइ थिर भाव ॥ परमातमन हो आतम भाववं, आतम अरपण दाव सुग्यानी ॥ सुम०॥५ For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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