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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार । ३४५ पुव्वकोडि, पंखीने इग भाग असंख्य पल्यनो जोड़ ॥ २९ ॥ सरब सूखम साधारण समुच्छम मणुं जह, जहन्न उक्कोसें अंतमुहुत्त नियम थिति तेह, इम उगाहरण आख्यो संखे अधिकार, जे बलि इत्थ विसेस २ सूत्र धार ॥ २२ ॥ असंख्य उसपिणी सह एगिंद्री आपणी काय, उपजै aa अनंत साधारण वरणस्सई काय ॥ संख्याता संच्छर विगल आपणी देह, सात आठ भव पंचेद्री तिरि मा जेह || २३ || नारकथी उद वरती जीव नरक नवि जाय, देव चवीने ते वलि देवपण नवि थाय ॥ इन्द्रीय सासोसास आउ बल ए. दस प्रारण, च्यार छ सात आठ इग दुति चौरिद्रोय जाण ॥ २४ ॥ सन्नि सन्नि पंचंद्री दस नव अनुक्रम जोय, प्राणथकी जेवि प्रयोग जिय मरणें होय ॥ भीम सायर संसार अपार अनंती वार, भमियो जीव धरम विन जोण - सोने च्यार ॥ २५ ॥ सग सग संग सग दस ३६ For Private And Personal Use Only 7
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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