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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार । ३३६ माणिक तेम भवण नरग व्यंतर जोइस चौपगा तिरि, एम ॥ २१ ॥ बेइन्द्री तेइन्द्री पृथवीने अपकाय, वायु वणस्सइ अधिक अनुक्रम करि कहिबाय ॥ हे जिन ए सहु भावमें पांम्या वार अनंत, तेहन अनुक्रम गितां किमही न आवै अंत ॥ २२ ॥ नर सुर विन सहु दंडगमें ते गति संयोग, लाधो नहीं तुह दंसण कीनो कम्म प्रयोग ॥ सुरमें पिण दंसण लहि विरतन पांमी मूल, ते सुर जात सहावे देसविरत प्रतिकूल ॥ २३ ॥ आरजदेश आरजकुल शुद्ध सुगुरु उपदेश, तेहथी तुह दरसणनो किंचित पांम्यो लेस ॥ धारक तारक कारक वारक दंशण देव, आतम गुण सं सार समत्त कम्म सयमेव ॥ २४ ॥ खरतर गच्छ भट्टारक श्रीजिनलाभ सुरिंद, रत्नराजमुनि सीस तेना पद अरविंद ॥ रज मकरंदे लीनो ग्यानसार तसु सीस, तेण तव्या तेवीस दार दंडग चोवीस ॥ २५ ॥ संवत ससि रस वारण तेम For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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