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________________ to8 Jaina Literature and Philosophy 10 (1) नेमि-राजुल धार मास वेल प्रबंध (2) 'लोचन-काजल' संवाद (3) शृंगारमंजरी शीलवतीचरित्र V. S. 1614. (4) सीमंघरना चन्द्राउला (5) सीमंधर-स्तवन =सीमंधरस्वामीलेख. (6) स्थूलिभद्र-कोशा-प्रेमविलास' फाग (7) स्थूलभद्रमोहनवेलि. He has written a commentary on Kavyaprakāsa. .. Subject.- A narrative about Rsidatta, a chaste woman in Gujarati in verse. Begins.- fol. 1 ॥ ६० ।। उदय अधिक दिन दिन हुइ । जेहनि लीधइ नामि ॥ ते पंच परमेष्टिनिं । हुं नित करु प्रणाम ॥ १॥ etc. ऋषिदत्ता निरमल थई । ते निज सत्व प्रमाणे ।। तस आख्यान वषांणतां । दइ मुझ निरमल वाणि ।। कविता महिमा विस्तरइ । फलइ वक्ता आस ।। भोता अतिरंगई जिणइ । सोहड वचनविलास ॥ ५॥ etc. Ends.- fol. 24 ऋखि(षि)दत्ता नइ राय कनकरथ । मुक्ति बिहुँ जण साधी ।। सकल कलंक थकी हुंकाणी । कीरति निर्मल वाधी॥ ५९ ॥ etc. 'बड़तपगच्छ सोहाकरा हो । श्री(वि)नयमंडण राणरायरे ॥ रत्नत्रय आराधका हो । जे जगि धर्मसहाये रे ॥ ६१ ॥ त्रोटक। जे जगि धर्मसोहाय गुणाकर । सुविहितनइंधुरि किद्ध ॥ तस सीस ग(गुणि(ण)सोभाग सुनामी । जयवंतसूरि प्रसिद्ध ॥६२॥ तेणइ रसिकजनाग्रह जाणी । विरच्यो सतीसुचरित ॥ उत्तम जन गुण सुणतां भणतां । जनम होइ पवित्र ॥ ६३ ॥ संवत् सोल सोहामणो हो । त्रेताल[ल]उ(१६४३) उदार रे ।। मागसिर शुदि चवदसि दिनि हो । दीपंती रविवार रे ।। ६४ ॥ त्रोटक। दीपतो रविवार सुरोहण | शिशि वर्तइं वृष रासिं ॥ ऋखि(षि)दत्ताचरित वषाणह । जयवंतसूरी उल्हासी ।। ६५॥ 20 1 This poem is published in प्राचीन फाग संग्रह (pp. 125-132). . For its colphon see Jaina Gurjara Kavio ( Vol. III, Pt, I, p. 672).
SR No.018100
Book TitleDescriptive Catalogue Of Manuscripts Vol 19
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Rasikdas Kapadia
PublisherBhandarkar Oriental Research Institute
Publication Year1967
Total Pages480
LanguageEnglish
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size25 MB
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