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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २१. पे. नाम. औपदेशिक दोहे- कालनी वातो, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहे- कालविषये, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: मूसा डरो काल से कठिन; अंति: में पला न पकड़े कोय, दोहा-२९. २२. पे. नाम. भक्ति केवी रीते करशो, प्र. ८अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहे- भक्तिगर्भित, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: माला तो कर में फिरे; अंति: हले नहीं जीभ होट, दोहा-२. २३. पे. नाम. साधु कोने केहवा, पृ. ८अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहे-साधुगुण गर्भित, कबीर, पुहि., पद्य, आदि: केशो कहा बिगाडियो जो; अंति: ऐसा चाहिये जैसा० होय, दोहा-२०. २४. पे. नाम. साधु थवु कांइ रस्ता मापज्युं नथी, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहे- साधुता, कबीर, पुहि., पद्य, आदि: जब लग नाता जात का तब; अंति: का संतज पावे नाम, दोहा-४. २५. पे. नाम. कहनी साथे करणी पद, पृ. ८आ, संपूर्ण.. औपदेशिक दोहे- कथनी और करनी, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: कहना मीठी खांड है; अंति: करनी मत करो के पीछे, दोहा-१३. २६. पे. नाम. मगजनी पंडिताई विरुद्ध हृदयनी पवित्राई पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहे- मगज की पंडिताई के विरुद्ध हृदय की पवित्रता, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: पढी गुणी पाठक भये __सम; अंति: बिन यूं कहे दास कबीर, दोहा-२. २७. पे. नाम. कृष्ण से पांडवों का प्रश्न, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहे-कृष्ण पांडव प्रश्नोत्तर, पुहि., पद्य, आदि: यह कृष्णा श्रीकृष्ण; अंति: जलद्दगों से था वुआ, दोहा-२५. २८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-शाणी स्त्री, पृ. ९अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-चतुर नारी, दलपतराम, पुहिं., पद्य, आदि: एक घरमांहथी रे घर; अंति: जो रे सीखामण दलपतराम, दोहा-१४. २९. पे. नाम. सेलडीनी संगति करनारी एरंडी, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-ईख की संगति करने वाली एरंडी, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: ओ एरंडी उत्तम संगति; अंति: दीधी सिखामण दलपतरामे. ३०. पे. नाम. औपदेशिक दोहे- छोटी नदी, पृ. ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहे-छोटी नदी, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: ओ छोटी नदी छत पामीने; अंति: विण पर उपगार करे सही, दोहा-१४. ३१. पे. नाम. वृक्षमहिमा वर्णन, पृ. ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहे- वृक्ष महिमा, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: जोओ आछो छोड अनाज तणा; अंति: दीठा नजरे दलपतरामे, दोहा-१२. ३२. पे. नाम. मकोड़ा कवित्त, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहे-मकोडा, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: ओमकोडा हट लेवानो; अंति: दलपतो सीखामण दे छे, दोहा-१२. ३३. पे. नाम. दरजीनी कातर गजने सोयना गुण दोष, पृ. १०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दरजी की कैंचीगज वसूई के गुण दोष, मा.गु., पद्य, आदि: सुण दरजीडा कातर गजने; अंति: अर्थ सिरे अलगाज धरे, दोहा-१५. ३४. पे. नाम. हाथीनी कवित्त, पृ. १०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-हाथिणी, दलपतराम, मा.गु., पद्य, आदि: हो हाथीणी जाणी मैं; अंति: दिधी ए आशीष दलपतरामे, गाथा-७. ३५. पे. नाम. कवित्त बादली, पृ. १०अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only
SR No.018061
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2013
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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