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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१५ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गोस्वामी तुलसीदास, पु,ि पद्य, आदि रोवत सारी अवध राम, अंतिः तुलसीहरि के गुण गाए, चौपाई ४७, (वि. कवित्त १० ) ५. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- वैराग, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: कालबली से लड़के, अंति: बनारसी० जो होवे तंत दोहा-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मृगतृष्णा, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: वनकाय में मन मृग चार, अंति: जन्में नहीं मरता है, दोहा-८. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद- परमार्थ, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद- परमार्थ, जै. क. बनारसीदास, पुहिं, पद्य, आदि जिसने नहीं कुछ दिया, अंति: बनारसी०उठी परभात १९३ चला, पद-४. ८. पे. नाम. द्रोपदी चीरहरण कवित्त, पृ. ३अ, संपूर्ण. द्रोपदीसती चीरहरण कवित्त, जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि द्रीपदी विपत्ति में, अंतिः बनारसी० की फेरी, दोहा-५. " ९. पे. नाम औपदेशिक पद- फकीरी, प्र. ३अ- ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद - फकीरी विषे, जै. क. बनारसीदास पुहिं., पद्य, आदि; मन को मार के बनाया अंति: बनारसी० जिगर समझे, दोहा-८, (वि. कवित्त युगल) १०. पे नाम, औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: कुरान की आयतें हम; अंति: बनारसी ० सखून मस्ताना, दोहा - ८. ११. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. जै.. बनारसीदास, पु,ि पद्य, आदिः यह काया है कामधेनुः अंतिः बनारसी नहीं करे खाली, दोहा-५. १२. पे. नाम. रुखमणी विवाह, पृ. ४अ, संपूर्ण. रुक्मिणी विवाह, शिशुपाल, पुहिं., पद्म, आदि: पांच सात मिल भामणी अंतिः कबके वे सरदार, दोहा-६. १३. पे. नाम. रुखमणी विवाह वर्णन, पृ. ४अ - ५आ, संपूर्ण. कवित्त संग्रह रुक्मिणी विवाह वर्णन, पुहिं., पद्य, आदि बनडा की अजब बहार, अंतिः पूज खड़ी वरजार, दोहा-१७. १४. पे. नाम. कवित्त संग्रह- कृष्ण रुक्मिणी, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: श्रीपति आवो आवो रे; अंति: जग में विख्यात रे, दोहा-२०. १५. पे नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण नमिजिन पद, पुहिं, पद्य, आदिः विदेह देश और मिथिला अंतिः राजरमण सब कुछ त्यागी, दोहा-४. १८. पे नाम. निर्गुण कवित्त, पृ. ७अ ७आ, संपूर्ण दोहा संग्रह, पुहि., पद्य, आदि कार बड़ो पेशकार को अंतिः जामें चीवीस चकार है. १६. पे. नाम. नेमराजुल पद, पृ. ६आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, पं. कपूरचंद, पुहिं, पद्य, आदि छाई घटा गगन में काली अंतिः कपूरचंद० जाउं बलिहारी, दोहा-६. १७. पे. नाम. नमिराज वर्णन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only औपदेशिक दोहे, कबीर, पुहिं., पद्य, आदिः यह काया कंचन से बहतर, अंति: कबीर ० क्या लगेगा मेरा, दोहा - २०. १९. पे. नाम औपदेशिक दोहे जीव एवं प्रमाद परिहार, पृ. ७आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहे - प्रमाद परिहार, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: एक बूंद ते सब किया; अंति: कबीर० गाफेल अपना हाथ, दोहा-१३. २०. पे. नाम औपदेशिक दोहे माचा परिहार, पृ. ७आ, संपूर्ण औपदेशिक पद-माया परिहार, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: माया माथे सींगडा, अंति: को जाके राम आधार, दोहा-७.
SR No.018061
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2013
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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