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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-वृद्धविवाह निषेध, पुहि., पद्य, आदि: बूढे बाबा करे विवाह; अंति: जो व्याह रचानेवाले, दोहा-६. ३७. पे. नाम. नशावृत्ति निषेध सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण.. पुहि., पद्य, आदि: होलि में खाक धूल; अंति: त्याग जलाओगे कब तलक, दोहा-५. ३८. पे. नाम. आलस परिहार सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-आलस परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: उठो जरा नींद को; अंति: जहाँ सब सुख समेरा है, दोहा-३. ३९. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: बने मस्तान अब हमतो; अंति: शिवपदको मिलायेंगे, गाथा-६. ४०. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: जिन आपको जोया नहीं; अंति: रंगा सो क्या हुआ, दोहा-४. ४१. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहिं., पद्य, आदि: यापन जतन बचाना जब; अंति: ली बाहर कफन से निकले, दोहा-५. ४२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, पृ. ८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्यविषये, पुहि., पद्य, आदि: देख लो इसका तमाशा; अंति: कहा तुम्हारा चंद, दोहा-८. ४३. पे. नाम. अहंकार परिहार सज्झाय, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-अहंकार परिहार विषे, पुहिं., पद्य, आदि: सुनो मित्र हमारा; अंति: म्हारा मूर्ख गंवारा, दोहा-४. ४४. पे. नाम. वैराग्य पद, पृ. ९अ, संपूर्ण. । औपदेशिक पद-वैराग्य, पुहिं., पद्य, आदि: बता दे भैया इस जग; अंति: तुमारा ले ले सुख जोन, दोहा-४. ४५. पे. नाम. साज श्रृंगार परिहार सज्झाय, पृ. ९अ, संपूर्ण. मु. गुरुदास, पुहिं., पद्य, आदि: जाय मिजाजी जोबन को; अंति: गुरुदास० गावत फटको, दोहा-५. ४६. पे. नाम. वेश्यावृत्ति परिहार सज्झाय, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वेश्यावृत्ति परिहार, पुहि., पद्य, आदि: खुजली उठ रही है वह; अंति: चुके हैं तुम्हें, दोहा-७. ४७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- वीरता, पृ. ९आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-महावीरता, पुहिं., पद्य, आदि: उठो भारत के क्षत्री; अंति: कर लो एक ईश का ध्यान, दोहा-५. ४८. पे. नाम. वीरता सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. ___ पुहिं., पद्य, आदि: अश्वटाप अरु रथ पहियो; अंति: काले काले मेघ जवान, दोहा-७. ४९. पे. नाम. देशभक्ति पद, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जागो भारत सुनो बाते; अंति: जगत से हट चला है तम, दोहा-५. ५०. पे. नाम. जीवहिंसा परिहार सज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जीवहिंसा परिहार, पुहिं., पद्य, आदि: जब से जिनमत को तजा; अंति: तुमको जमाना हो गया, दोहा-६. ५१. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: आप में जब तक कि कोई; अंति: तुझको नजर आता नहीं, दोहा-४. ५२. पे. नाम. जीवहिंसा परिहार सज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवहिंसा परिहार, न्यामत, पुहिं., पद्य, आदि: जुल्म करना छोड़ दो; अंति: न्यामत०भले के वास्ते, दोहा-६. ५३. पे. नाम. जीवहिंसा परिहार पद, पृ. १०आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: यह नहीं कलयुग है कर; अंति: आँख उठा के देख लो, दोहा-३. ५४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १०आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अमोलक जैनधर्म प्यारे; अंति: होय धर्म भवसागर तारे, दोहा-३. . . For Private and Personal Use Only
SR No.018061
Book TitleKailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2013
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size11 MB
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