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________________ 25 Catalogue of Sanskrit & Prakrit Manuscripts APPENDIX 2 (Copies of inscriptions) यः कच्छपाधिप' जातिरेष विजयी श्रीमानसिंहो नृपः, ........... सदा विजयतां ............ दासः सुधीः । श्रीगोविन्दपदारविन्द ... ... ...... स्तन्मन्दिरं संमदा कुर्वन्तुष्पभमत्र तूर्ण पू.......... ............." ।।५।। श्रीगोविन्दपद .......................... श्रीमानसिंहाद्भुतम् ॥६॥ ............ भवदाविष्यदखिल श्री वैष्णवानां सुखं श्री कर्ता हरिणा सदा निज दयाया० याविनि """ ७॥ ................. श्रीग्रसेनः कृती तौ द्वौ श्रीयुतमानसिंहनृपतिप्रस्थापितौ नन्दताम् । किंवाग्नद्ववनीय................ ................ ...................... प्रतिपदं सौख्यंग्महंद्विन्दतु ।।८।। मुनिवेदतुचन्द्राह्वसम्वन्मन्दिरसम्भवे।। ........................ कलिलुप्ता तत" तौ श्रीयुतवृदावनेशितुः सेवाम् । श्रीमद्रुपसनातन नामानौ तौ भजेत ....... ॥१०॥ ऊपर की प्रशस्ति के बगल में चौखंडी के खभे पर हिन्दी का शिलालेख संवतु ३४ श्रीशुकवंध अकबरसाहराज्ये कूर्माकुलश्रीपृथ्वीराजाधिराजवंश महाराजश्रीभगवंतदाससुत श्रीमहाराजाधिराजश्रीमानसिंहदेव श्रीवृन्दावनजोगपीठस्थान मन्दिर करायो श्रीगोविंददेवको। - वृन्दावन के श्री गोविन्ददेवजी के मन्दिर की बांई बाजू श्री वृन्दादेवी के मन्दिर के बाहिर परिक्रमा में आमेर के कछवाहा राजा मानसिंह का हिन्दी भाषा का शिलालेख । संवत् ३४ श्री शकबंध अकबरमहाराज श्रीकूर्मकुलश्रीपृथ्वीराजाधिराजवंशमहाराजश्रीभगवंतदाससुत श्रीमहाराजाधिराजश्रीमानसिंहदेव श्रीवृन्दावनजोगपीठस्थानमन्दिर करायो श्री गोविन्ददेवको काम ऊपरि श्रीकल्याणदास आज्ञा करी माणकचन्द चौपड़ा शिल्पकारी श्रीगोविन्ददास दीलवल (देवल ?) कारि गुरु छः (छै ?) गोरखदास सुबी भवल (शुभं भवतु ?) १. कच्छाधिपजा = कछवाहा जाति। २. श्रीरूपगोस्वामी। ३. श्रीसनातनगोस्वामी। ये दोनों श्रीचैतन्यसम्प्रदाय के प्राचार्य और श्रीगोविन्ददेव के पूजारी थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018048
Book TitleSanskrit and Prakrit Manuscripts in Rajasthan ORI Part 02 C
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherRajasthan Oriental Research Institute Jodhpur
Publication Year1966
Total Pages378
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationCatalogue
File Size12 MB
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