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________________ ग्रंथाका ८ ...... जीर्ण .......... जिनभद्रसूरि कामळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग प्रथन नाम | स्थिति | | भाषा संवत् । पत्र संख्या झेरोक्षसी .डीग्रंथान विशेष नोंध सन्मतितर्कप्रकरण तत्वबोध ........... जीर्ण ...मू.सिद्धसेन दिवाकर, ..प्रा.सं............ १४८७/१२६(१६३३-१७५७)/........५८+५९..२३१/.. १२८३८ विधायिनीवृत्ति सह प्रथम खंड ................ अभयदेव आचार्य वृ. तर्कपंचानन सन्मतितर्कप्रकरण...................... मध्यम ..मू.सिद्धसेन दिवाकर, ...प्रा.सं.....................९६(१७५८-१८५३) ........५८+ ५९.२३१-- १२१६२ तत्त्वबोधविधायिनीवृत्तिसह .. " सतह .............. अभयदेव आचार्य -वृ. द्वितीय खंड ......... तर्कपंचानन ज्योतिष्करंडकप्रकीर्णक वृत्तिसह .. जीर्ण... मलयगिरि आचार्य -वृ..प्रा.सं............ १४८८.५३(१८५४-१९०८) आचारांगसूत्रघूर्णी ..... मध्यम ... प्रा.. ... १४८८-८३(१९०९-१९९१) ...............६१...२३१ सूत्रकृतांगसूत्रपूर्णी .... जीर्ण.... ..९८(१९९२-२०८९) ..६२...२३१ कल्पविशेषचूर्णी ...... जीर्ण ..... .प्रा.. १०४(२०९०-२१९८) ........६३ +६४...२३२ .. ११००० । सूर्यप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र ... ............२५(२१९९-२२३३),........६३ + ६४ ...२५८ सूर्यप्रज्ञप्तिउपांगसूत्रवृत्ति ..... मध्यम ..मलयगिरि आचार्य ...... ......... १४८९.९३(२२३४-२३३३) ..२३२....९५०० अन्तनां वे पत्र अति जीर्ण छे. दर्शनसप्ततिकाप्रकरणवृत्ति ........ श्रेष्ठ .... संघतिलकसूरि वृ........ ...................५७(२९३-३४९) ...............६६ ...२३२ न्यायभाष्य टिप्पणीसह .. जीर्ण ... वात्स्यायनमुनि............ ..५७ न्यायवार्तिक टिप्पणीसह ............. ..................१४२(५८-२००)...............६८ ...२३३ न्यायवार्तिकतात्पर्यवृत्ति टिप्पणीसह ....जीर्ण .... वाचस्पति मिश्र....... ....२०१(२०१-४०१) अंतिम पत्रनो टूकडो छे. न्यायतात्पर्यपरिशुद्धि टिप्पणीसह .......जीर्ण .... उदयनाचार्य ........... १६५(४०२-५६६) .........७० .... पत्र ५४०, ५४९ मुं नथी. न्यायटिप्पनक श्रीकंठीय .............. जीर्ण... श्रीकंठ ................ ..४९(५६७-६१५) पंचप्रस्थान न्यायमहातर्कविषमपदव्याख्या .जीर्ण ... अभयतिलकगणि........... २०६(६१६-८२१) ..............७२ - २३४ न्यायालंकार न्यायवार्तिकभाष्यवृत्तिविवरण ........... जीर्ण ... अनिरुद्ध पंडित ........... सं. २६(८८२-८७) ७४ ......... नवतत्वप्रकरण भाष्यवृत्तियुक्त ........... अतिजीर्ण देवगुप्तसूरि -मू.. ....... प्रा.सं.र.११७४-ले.१४९९ .......... ............२३४....२४००/- प्रति अस्तव्यस्त अने खवाएली छे. अभयदेवसूरि -भा., यशोदेवसूरि -यू. . धर्मसंग्रहणिप्रकरण वृत्तिसह ............ अतिजीर्ण हरिभद्र आचार्य -मू.. ..प्रा.सं... ......७५.२५८............ प्रति अस्तव्यस्य अने खवाएली छे मलयगिरि आचार्य वृ. | सिद्धहेमशब्दानुशासनलघुवृत्ति पष्ठाध्यायपर्यंत .. मध्यम.. हेमचन्द्राचार्य ...सं. ........... पत्र ५१ थी ६७ उंदरे करडेला छे जीर्ण... भारद्वाजमुनि .........७० 00+७१.२३४ ..... Jain Education Internationen For Private &Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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