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________________ | ग्रंथांक जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार • जैसलमेर दुर्ग ग्रंथर्नु नाम | स्थिति | कर्ता भाषा संवत् पत्र संख्या - आवश्यकसूत्रनियुक्ति ....................जीर्ण .... भद्रबाहुस्वामि ............ प्रा.............. १४८७ ..................३३ आवश्यकसूत्रलघुवृत्ति ... ..................जीर्ण .... तिलकाचार्य ................ सं. .र.१२९६-ले.१४८८.....१५३(३४-१७४) IT झेरोक्षसी .डी. ग्रंथान विशेष नोंध ............३५...२२७/-...३१०० ......३६ - २२७/- १२३२५ आदि अंतना पत्र अतिजीर्ण अने 'फाटेलां छे ..........३७...२२८ .. १२३८४ आवश्यकसूत्रवृहद्वृत्तिशिष्यहिता प्रथमखंड ... जीर्ण .... हरिभद्रसूरि ........... प्रा.सं............. १४८७ .. १३४(१७५-३०८) आवश्यकसूत्रवृहदवृत्तिशिष्यहिता द्वितीयखंड जीर्ण ....हरिभद्रसूरि -वृ.......... प्रा.सं.........................९२(३०९-४०१) आवश्यकसूत्रटिप्पनक जीर्ण .... मलधारी हेमचंद्रसूरि ..... सं.. ........... १४८८-....४१(४०२-४४२) ओघनियुक्ति ... श्रेष्ठ ..... भद्रबाहुस्वामि ............ प्रा.............. १४८९ -....१४(४४३-४५६) ओघनियुक्तिभाष्य ................३०(४५७-४८६) ओघनियुक्तिवृत्ति श्रेष्ठ ..... द्रोणाचार्य ............... ............ १४८८-....७३(४८७-५५९) दशवैकालिकसूत्र जीर्ण .... शय्यंभवसूरि .............. प्रा. ............... ....७(५६०-५६६) दशकालिकनियुक्ति .... जीर्ण .... भद्रबाहुस्वामि ............प्रा. .................... ५(५६५५७१) दशवैकालिकसूत्रबृहदवृत्ति ............. जीर्ण ....हरिभद्रसूरि आचार्य ...... सं. .......... १४८७....७२(५७२-६४३) दशबैकालिकसूत्रचूर्णी. ...................... प्रा............. १४८८-....७५(६४४-७१७) जीर्ण ... .............. प्रा. ...... .३८...२२८/-- १०६१६ ...२२८....४७२० 1.२६५....१४३२ गाथा. ११४६ 1.२६५ गा.२५१७ 1.२२८-...७००० ...२२८ ....७०० ....... गा.४४० ...२२९/ .४६ . २२९ ........२६५/ .४७.२२९/-...७००० .२६५ ...२२९ .....७०० ...२२९ -...७७३२ प्रति शुद्ध छे. ५०..२३०....२००० .J.२३०....400 ..२३० .५३+५४...२३० +५४ ...२३०/-....७०० ..५५ ---२३० ....५६ ...२३०/-...५८५० ............५७ ...२३०....३६५० पिंडनियुक्ति वृत्तिसह .................... श्रेष्ठ .... भद्रबाहुस्वामि -नि....... प्रा.सं............. १४८९ ....७४(७१८-७९०) मलयगिरि आचार्य -वृ.. नंदिसूत्र ............................. अतिजीर्ण देववाचक ................. प्रा. ....८(७९१-७९८) नंदिसूत्रवृत्ति .. जीर्ण .... मलयगिरि आचार्य ....... सं. .............. .८५(७९९-८८३) अनुयोगद्वारसूत्र श्रेष्ठ ..... आर्यरक्षितसूरि ........... प्रा. ....१८(८८४-९०१) अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति ... श्रेष्ठ ..... मलधारी हेमचंद्रसूरि ..... सं. १४८९ .....५४(१०२-९५५) अनुयोगद्वारसूत्रलघुवृत्ति श्रेष्ठ ..... हरिभद्रसूरि आचार्य ....... सं. ..३१(१५६-९८६) उत्तराध्ययनसूत्र ..................... ............प्रा. ............. २४(९८७-१०१०) उत्तराध्ययनसूत्रनियुक्ति .............. जीर्ण .... भद्रबाहुस्वामि ............. प्रा. +-.७(१०११-१०१७) उत्तराध्ययनसूत्रबृहदवृत्ति-पाइयटीका ... जीर्ण ....वादिवेताल शांतिसूरि ..... सं.. ...१८४(१०९८-१२०१) उत्तराध्ययनसूत्रचूर्णी ... ..................मध्यम ... गोपालिकमहत्तरशिष्य....प्रा. ....... १४८८.५८(१२०२-१२५९) विशेषावश्यकमहाभाष्य .................. जीर्ण .... जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण |. प्रा... ...४५(१२६०-१३०४) ............... जीर्ण .... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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