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________________ _ भाषा संवत् पत्र संख्या । झेरोक्ष सी.डी. ग्रंथान विशेष नोंध जिनभद्रसूरि ताडपत्रीय ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथांक ग्रंथनुं नाम कतो ३८४ .... खंडनखंडखाद्यशिष्यहितैषिणीवृत्ति .........टिप्पणीयुक्त ............ ३८५.... खंडनखंडखाद्य.... ........श्रीहर्ष............. ३८६ .... न्यायमंजरीग्रंथिभंग ...................... चक्रधर ............. ........... १३००............१८१ ............३८४ १२९१/ १३००...........१८६ .... ३८६ + ३८७ ...........२६१ ...१९१० ....१९६ ..........७०२५ - प्रति शुद्ध छे. .१९६ -पत्र २ थी ५.१०.३३,३४,१०२,१०३.११०,११५. १२२,१२९ थी १३३,१३५,१३६,१३८,१३९, १६८ थी १७२.१७८,१८१ नथी. पत्र १३४ टूकडो छे. पत्र १२० डबल छे. ......सं. .........५१ ........५१-९७ .........१११४ ....३८६ + ३८७ ....३८६ + ३८७ ........३८८ ..१९७ ३८७/१, शाबरभाष्य प्रथम अध्याय .......... ३८७/२, प्रमाणान्तर्भाव .............. देवभद्र तथा यशोदेव ....... सं. ३८८/१, इष्टसिद्धि वृत्ति सह अपूर्ण .. ........... परमहंस विमुक्तात्माचार्य ... सं. स्वोपज्ञ ३८८/२. भगवद्गीता भाष्य सह ................... भा.क.शंकरस्वामी .......... ३८९ .... गौतमीयन्यायसूत्रवृत्ति .............. ३९०.... भाष्यवार्तिकवृत्तिविवरणपंजिका ...... द्वितीयाध्यायथी पंचमाध्याय पर्यत ....... अनिरुद्ध पंडित ............ ३९१/१, सांख्यसप्ततिकाभाष्य ...................गौडपाद .......... १२००/.. ..........१३० ... १२०८ ..........१२४ पत्र १२९.१३० मा शोभन छे. पत्र १२३ मा शोभन छे. ......१९७ -......१९८ ... १३००/...........११७ १२०० .......१२-८३ ..... ३९१/२ सांख्यसप्ततिकाटीका-सांख्यतत्वकौमुदी. वाचस्पतिमिश्र ............ ....................९०-१८४ ..........३९१ पत्र १ थी ११, ३६ थी ४०,४२,४३,४५ थी ४७,४५/ ६६ थी ७५.८२ नथी पत्र ९३-९४.९६-९८.१०१-१०४.१०७,१०९. |११६-१३० नथी आ.७२ आ.७२ ......... पत्र ८० मां शोभन छे. १२०० १९९ ३९१/३१ सांख्यसप्ततिका. ईश्वरकृष्ण ३९२/१ सांख्यसप्ततिका ........... ईश्वरकृष्ण ३९२/२ सांख्यसप्ततिटीका-सांख्यतत्त्वकौमुदी..... वाचस्पतिमिश्र.. ३९२/३ सांख्यसप्ततिकाभाष्य .. गौडपाद .......... ३९३ .... सांख्यसप्ततिका वृत्तिसह ........... ...........३९१ ....३९२ +३९३ ....३९२ + ३९३ ....३९२ + ३९३ ....३९२ + ३९३ .८५५ ..१९९ १३०० . पत्र ५७.५८,६० थी ६३.६६ थी ७४,७६ थी ७९ नथी. ७०मां पत्रनो टुकड़ों छे. अंत्य पत्रमा शोभन छे. १२०० ३९४ .... सांख्यसप्ततिका वृत्तिसह ............... ....मू.क.ईश्वरकृष्ण ३९५/१४ पातंजलयोगदर्शनभाष्य वृत्ति ............ वृ.क.वाचस्पतिमिश्र ........ ...........१०२.....३९४+३९५ ...१-१६०,....३९४ + ३९५ .... १९९ ......२०० Jain Education International For Private &Personal use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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