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________________ जिनभद्रसूरि ताडपत्रीय ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथनुं नाम ३५३/२ धर्मरसायनरासक सटीक... ग्रंथांक कर्ता भाषा ग्रंथान संवत् । पत्र संख्या झेरोक्ष सी.डी. ........... १४००.........३८ थी .... ३५२ + ३५३ ......१८९ अप.सं विशेष नोंध पत्र ६१,६२,६५.६८,७०,७१,७३,७४.७६७८ थी ८१, ८३ थी ८७,८९.९४.९६ थी १०३, १०५ नथी. १३१४ + १६-१६५ ........७३ + ... १३५० ......९०० जयसिंहसूरि ..... १८०, का.७७ अंत्य पत्रमा शोभन छे. १३०० ३५४ .... गउडवहोमहाकाव्य सटीक ............. मू.क.वाक्पतिराज,टी.क. .............................भट्ट उपन्द्रहारपाल भट्ट उपेन्द्रहरिपाल ......प्रा.सं......... .......२४८,....३५४ + ३५५ ३५५ .... अनर्घराघवनाटक ....................... मुरारि कवि........... -प्रा.सं.. .......१६९ ....३५४ + ३५५ ३५६ ... अनर्घराघवनाटक टिप्पनक ............ मलधारी नरचंद्रसूरि ....... सं. १४०० ........३५६ ३५७/१, मुद्राराक्षसनाटक टिप्पणी सह .......... विशाखदेव ................प्रा.सं. .... ३५७+ ३५८ ३५७/२ प्रबोधचन्द्रोदयनाटक टिप्पणी सह ...... कृष्णमिश्र ............. .प्रा.सं. १३१८ ३५८.... वेणीसंहारनाटक ........................ भट्ट नारायणकवि.... .प्रा.सं. ३५९/१४ हम्मीरमदमर्दननाटक जयसिंहसूरि प्रा.सं ३५९/२१ वस्तुपालप्रशस्ति ..................... ३५९/३/वस्तुपालस्तुतिकाव्य ३६०... नागानंदनाटक ......................... श्रीहर्षकवि.. प्रा.सं. ३६१... चंद्रलेखाविजयप्रकरणनाटक ............ देवचंद्रमुनि हेमचंद्रशिष्य ..प्रा.सं. ..........२०३ ....३६१ + ३६२ ....... ३६२... अनेकांतजयपताका टिप्पनक ......... मुनिचंद्रसूरि. ११७१ ...........१३१ .....३६१ + ३६२ ३६३.../सन्मतितर्कप्रकरण तत्वबोधविधायिनी...मू.क.सिद्धसेन दिवाकर, [.प्रा.सं............. १२००/.........२-२५२ वृत्ति सह द्वितीयखंड किंचिदपूर्ण ....... वृ.क.अभयदेवसूरि ..... तर्कपंचानन ३६४/१/न्यायावतारसूत्रवृत्ति टिप्पणी सह ........ वृ.क.सिद्ध साधु, टि.कत्री ज्ञानश्री आर्यिका ............ सं. .१-१३७ ३६४/२न्यायबिंदुवृत्ति टिप्पणी सह ............ धर्मोत्तर .... ..................१३७-२४५ न्यायप्रवेशवृत्तिपंजिका ... पार्श्वदेवगणि ............ २४५-३४७ ३६४/४ न्यायावतारसूत्र ... सिद्धसेन दिवाकर .......... .................३४८-३५० ३६४/५ न्यायबिंदु दिग्नाग आचार्य, ........सं. .... १४९० ......३५०-३५९ |३६५... न्यायकंदली टीका अपूर्ण .... श्रीधर भ ट्ट ................ ............. १३०० ...........३८७ ३६६/११द्रव्यालंकार सटीक द्वितीयपरिकद ...... रामचंद्र-गुणचंद्र स्वोपज्ञ ..... सं.. १९७ पत्र १०६,११६,११८,१२३, १३३,१४४, १४८. १७०,१८१ नथी. पत्र १.८.१५,२२,७६,१०९,२३० थी २३३ नथी लीपी विशेष प्रकारनी छे. ३६४/३ विशेष प्रकारनी लीपी छे. ...पत्र ९१.९२, १२८ नथी Jain Education International For Private &Personal use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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