SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्रंथांका संवत जिनभद्रसूरि ताडपत्रीय ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथर्नु नाम कर्ता. भाषा । पत्र संख्या | झेरोक्ष सी.डी. ग्रंथान विशेष नोध १९९ .... बृहत्संग्रहणीप्रकरण सटीक ............ मू.क.जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, टी.क. मलयगिरि आचार्य 1.प्रा.स............. १२९६|...........२८१/............१९९ ......१२५,......... ५०००-अंतिम पत्रमा शोभन छे. २०० .... बृहत्संग्रहणीप्रकरण सटीक किंचिदपूर्ण .मू.क जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, टी.क. शालिभद्रसूरि ..... ........प्रा.सं. र.११३९-ले.१३००/...........१५६ ............२०० ......१२६ ......... २५०० २०१... बृहत्संग्रहणीप्रकरण सटीक मू.क.जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, टी.क. शालिभद्रसूरि .. ...प्रा.सं.र.११३९-ले.१३०० ........... १८९ /............२०१/......१२६ ......... २५०० - अंत्य पत्र जीर्ण छे २०२... बृहत्संग्रहणीप्रकरण सटीक .......... म.क.जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, टी.क. ......... शालिभद्रसूरि .. ........प्रा.सं. र.११३९-ले.१२०१/...........१५०..... २०२ + २०३ ......१२६ /......... २५००,१०१ अने १२७ उबल छे. २०३ ... संग्रहणीप्रकरण सटीक ............ मू.क.श्रीचन्द्रसूरि, वृ.क.देवभद्रसूरि ...........प्रा.सं............. १४००/......१३०-२५९ ....२०२ + २०३ -......१२६ .......... ३५०० . आदिनां १२९ पत्र नथी २०४ ... प्रवचनसारोद्धारवृत्ति प्रथमखंड, मू.क.नेमिचंद्रसूरि, वृ.क. सिद्धसेनाचार्य .. ....सं............. १४०० ...........१९५ ,............२०४ ......१२६ । २०५.... पिंडविशुद्धिप्रकरण सटीक मू.क.जिनवल्लभगणि, टी.क.यशोदेवसूरि ........प्रा.सं. २.११७६-ले.१४०० ...........१८४............२०५ .......१२७ [...टी.पं.२८०० २०६ .... प्रवचनसारोद्धार वृत्तिसह .......... मू.क.नेमिचन्द्रसूरि............... र.१२४२-ले.१२९५ ...........४३८..... २०६(१-२) १२७/१२८ |३५९मुं पत्र नथी. पत्र रमा भ. महावीरनु,पत्र वृ.क.सिद्धसेनगणि............... ..............४३६मां देवीनु, ४३७मां आचार्यशिष्यने वाचना आपे छे. एम त्रण शोभनो छे २०७ ... चैत्यवंदनभाष्य संघाचारटीकासह ........ मू.क.देवेन्द्रसूरि.... ....... १३२९ ...........२६१ ..... २०७(१-२) -.१२८/१२९ ....... ७८०८ - आ पोथी टीकाकार आ.श्री धर्मघोषसूरिनी टी.क. धर्मघोषसूरि पोतानी छे. २०८ ... पंचाशकप्रकरण वृत्ति वृ.क.अभयदेवाचार्य ................... १२००/........... २६२ ..... २०८ (१-२) F......१२९ आ प्रतिमा दरेक पंचाशकनी समाप्तिना सूचन तरीके वीसेक पत्रोमा विविध शोभनो छ| संवत १२०७मां अजयमेरना भंग पछी आ प्रतिने फरीथी पूर्ण करवामां आवी छे. .प्रा.सं....... 1ोत ................. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy