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________________ कर्ता सी.डी. | ग्रंथांका ग्रंथर्नु नाम भावा संवत् पत्र संख्या । २... दशवकालिक लघुवृत्ति .................. -सुमतिसूरि १२.१२२०-ले.१४८८ ......२७२-३५८ ८९/१... दशवकालिकचूर्णी ... ....... १४८९/.........१-३५५ ८९/२...दशवकालिक नियुक्ति .................. भद्रबाहुस्वामी .......... १४९०/......३५६-३८० ९०/१.. पिंडनियुक्ति (महल्लिया पिंडनियुक्ति)... भद्रबाहुस्वामी .......... ....................१-३० ९०/२... पिंडनियुक्ति लघुवृत्ति ..................३१-१०२ ९०/३ .. पिंडनियुक्तिबृहवृत्ति सह ................. मलयगिरि आचार्य ... ............ १४८९ .........१-२४१ पिंडनियुक्ति वृत्तिसह .................... नि.क. भद्रबाहुस्वामी, वृ.क. मलयगिरि. .प्रा.सं............. १२८९/...........२०० ९२ ..... पिंडनियुक्तिवृत्ति ......................... वीरसूरि ............ १४००/...........२४७ झेरोक्ष ..८८ (१-२) ...८९(१२) ...८९(१-२) ....९०(१-२) ...९० (१-२) ...९० (१-२) जिनभद्रसूरि ताडपत्रीय ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथान विशेष नोंध ..२५०० ...८४०० गा.४५० गा. ६९७ ...७५०० ९१ ..... ...........९१ |९३/१... पिंडनियुक्ति लघुवृत्ति ..... ९३/२...पिंडनियुक्ति.. भद्रबाहुस्वामी ९४/१ ... आवश्यकनियुक्ति किंचिदपूर्ण ............ भद्रबाहुस्यामी ९४/२... उत्तराध्ययनसूत्र .............. ....................१-१३१ ........... १३००......१३२-१७५ ....... ..........६६ ......... १४८७ ....७९/८० ७९/८० ....७२५० ......७६७१. पत्र २३५.२३७,२४२,२४४,२४६ नथी. ये पत्र ........... नंबर विनानां छे.४७ थी ६५ साथे छे. ...२९५० . गा.1900-पत्र १, १३१, १३२, १७५ मां सुंदर शोभनो छ| पत्र २४.५४ नथी. १.४.१४.२७,२९,३३,४९ नथी.५,१६,२१.२६ टुकडा छे. ....... ५८५५ - पत्र १६, १९५ नथी. पत्र १,१०,७८,३०९ नथी. ...........१,४,१४.२० १४८९ ९५..... उत्तराध्ययनसूत्र चूर्णी.. ............... गोपालिक महत्तर शिष्य .... प्रा. उत्तराध्ययनसूत्र बृहदवृत्ति वादिवेताल शान्तिसूरि पाइयटीका किंचिदपूर्ण.. थारापद्रगच्छीय उत्तराध्ययनसूत्र बृहदवृत्ति वादिवेताल शांतिसूरि . द्वितीयखंड (पाइयटीका) .......... थारापद्रगच्छीय ९८ .... उत्तरध्ययनसूत्र सुखबोधावृत्तिसह ...... वृ.क.नेमिचंद्रसूरि ..........प्रा.सं... ......... १३५४ ........... १४९१/... .......९७ . ......९८ (१-२)....८२/८३ ................अपं. ९९ .... उत्तराध्ययन सुखबोधावृत्ति सह ......... वृ.क. नेमिचंद्रसूरि .........प्रा.सं.... ........ १४९१)...........४५५,......९९ (१-२)........८४ ... पत्र ४३ नथी. १७१८ साथे छे. अप. मा.सं............. १३००/...........३१७ /..... १००(१-२) ........८५ |१०० .... उत्तराध्ययनसूत्र सुखावबोधा वृत्ति ........ नेमिचन्द्रसूरि ........... Qटक अपूर्ण लगभग २०० जेटलां पाना छे. पत्र पथी१४. १६थी२१,२३थी३४,३७.३९,४३,४५थी४९, ५१थी७२,७४,७६थी८३,१०४,१८०थी१८२. |१८४.१८८,२४०,२५०.२९१ नथी. Jain Education International For Private &Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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