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________________ ..... श्रेष्ठ..... श्रेष्ठ.... जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर 'दुर्ग ग्रंथांक ग्रंथर्नु नाम | स्थिति कर्ता भाषासंवत ___ संवत् पर । पत्र संख्या । मेरोक्ष सी.डी ग्रंथाना विशेष नोंध २१२०/७..... लघुअजितशांतिवृत्ति ............... .....धर्मतिलकोपध्याय........ प्रा...........र. १३२२............. २७-३१....२१२०-२१२२...२८९ --... ३२० २१२०/८ .... भयहरस्तोत्रवृत्ति ................. जिनप्रभसूरि ........... ३१-३५/....२१२०-२१२२.,.२८९ .....३०० २१२०/९.....तं जयउ स्तववृत्ति ....... जयसागर वाचनाचार्य .. ................................३५-३७ ....२१२०-२१२२...२८९ २१२०/१०.. गुरुपारतंत्र्यस्तववृत्ति ..... .................... ३७-३९/....२१२०-२१२२.,.२८९ २१२०/११ ... सिग्घमवहर स्तोत्र .... ................................ ३९ ....२१२०-२१२२...२८९ २१२०/१२ ... वसग्गहरं वृत्ति ......... .....जिनप्रभसूरि .............. ........................ ४०-४३|....२१२०-२१२२...२८९ २१२०/१३ .. भक्ष्याभक्ष्यगाथा वृत्ति .... ....... ................४३ ....२१२०-२१२२...२८९ २१२०/१४ ..पार्श्वनाथ स्तोत्र वृत्ति .. श्रेष्ठ..... ........................... ४३-४४/....२१२०-२१२२.,.२८९ २१२०/१५ ..पार्श्वनाथ स्तोत्र वृत्ति . .......................४४-४५ ....२१२०-२१२२...२८९ २१२०/१६ ..साधुप्रतिक्रमण सूत्रवृत्ति ...................४५-४९ ....२१२०-२१२२...२८९ २१२०/१७ ...तिजयपहुत्त स्तोत्रवृत्ति ... श्रेष्ठ.....हर्षकीर्ति .१८८५ ....... ४५-५१ 1....२१२०-२१२२...२८९ २१२१ ...... प्रकीर्णकविचारसंग्रह ..... मध्यम... ..१० २१२२ ....... सारोद्धारकोश सस्तबक जीर्ण.. |....२१२०-२१२२ गौतमस्वामिरास ...... मध्यम .. विनयप्रभ. गुज.र.१४१२-ले.१७२९ |.२१२३ + २१२४ लघुसिद्धांतकौमुदी अपूर्ण श्रेष्ठ.. २५/..२१२३ + २१२४ शंखेश्वरपार्श्वनाथछंद... मध्यम ... वर्द्धमानकवि .........२१२५...२८९ द्वादशभावफलविवरणज्योतिष 1..२१२६ + २१२७ ....... प्रति पाणीथी भीजाएली छे अव्ययसंग्रह ........... मध्य म....... २१२६ + २१२७ जीवविचारप्रकरणवृत्ति ................. मध्यम ......... ૨૧૨૮ एकाक्षरीनाममाला ..................... मध्य म .................. पाणिनीय व्याकरणगणपाठ ............ २१३० ...२८९ कल्पसूत्रटीका अपूर्ण .............. मध्यम....... |..२१३१ + २१३२ श्री चंद्रीयसंग्रहणीप्रकरण ... मध्यम ...श्रीचंद्रसूरि २०/..२१३१ + २१३२ चिंतामणिसार प्रत्यक्षखंड श्रेष्ठ.....भवानंद सिद्धांत ....... ४४ २१३३ थी २१३७ ...२८९ .... ...... लखतां अधुरी छे पदमकोश......... मध्य म .......... ....६.२१३३ थी २१३७ ऋषभदेवस्तवनआदिपत्र . मध्य म................ ..........६ २१३३ थी २१३७ ... २८९ २१३५/१....आदिनाथ स्तवन.................... ....मध्यम ... रतनचंद.............. ........ १-२ २१३३ थी २१३७...२८९ सं. मध्यम .... श्रेष्ठ ........... Jain Education International For Private &Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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