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________________ 4.प्रस्तावना दूसरे तलघरमें एक छोटी खिडकी जैसे द्वारसे तीसरे तलघरमें जाया जाता है । बैठे बैठे ही | तरह पूर्ण करना ही था । सो सभी ताडपत्रीओं का और कुछ महत्त्व की कागजकी प्रतिओं प्रवेश हो सकता है । स्थूल शरीरवाला तो उसमें बडी मुश्कील से प्रवेश कर सकता है । का स्केनींग करवाया और महत्त्व के सभी ग्रंथो की फोटोस्टेट (Xerox) अनेक मशीनें लगवाकर इस तीसरे तलघरमें लोहे की चार पांच अलमारियाँ है, जिसमें ताडपत्रीय प्राचीन हस्तलिखित जर्मन आलाबास्टर कागज पर करवाई । स्तवन-सज्झाय-रास-ज्योतिष के अर्वाचीन ग्रंथ - गुटकोंप्रतियाँ अल्युमिनियमकी पेटीयोंमें सुरक्षित ढंगसे रखी गयी हैं । यह भाग बहुत छोटा है । उसमें सारस्वत-चन्द्रिका व्याकरण आदि के ग्रंथ-छुटक-छुटक पन्नें और जिनकी अनेक अनेक हस्तलिखित एक छोर पर खोखला गुप्त स्तंभ है । इस गुप्त स्तंभमें क्या है उसका कीसीको पता नहीं । प्रतियाँ है वैसे हस्तलिखित ग्रंथों में से कुछ कुछ प्राचीन ग्रंथों को छोडकर शेष प्रतियों-ऐसे कोई कहे उसमें पारसमणि है, कोई कहे उसमें कीमती जवाहरात है, कोई कहे उसमें प्राचीन ऐसे सामान्य सामान्य स्वरूप के ग्रंथों को छोडकर सभी महत्त्व के ग्रंथों की स्केनींग द्वारा सी.डी. महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । सब कल्पनाका विषय है । उसको खोलनेकी चेष्टा करनेसे आदमी विक्षिप्त या फोटोस्टेट हमने करवाई है । कुछ ग्रंथों की सिर्फ स्केनींग द्वारा सी.डी., कुछ ग्रंथों की या अंधा हो जाता है ऐसी किंवदन्तीयाँ चलती हैं इस कारण यह खोखला स्तंभ आज भी एक स्केनींग द्वारा सी.डी. एवम् फोटोस्टेट उभय, कुछ ग्रंथो की सिर्फ फोटोस्टेट करवाई है । ये रहस्य बना हुआ है। सब करने के बाद फिर उसकी जाँच (कार्य बराबर हुआ है या नहीं? कुछ पन्ने छुट तो जैसलमेर के पश्चिममें ६ कि.मी. पर अमरसागर नामक स्थान है । उसमेंभी जैसलमेरके नर्हि गये? इत्यादि बातों की चौकशी) में बहुत बहुत बहुत समय लगा । इस कार्य में वर्धमान पटवा हवेली के मालिक बाफना परिवार द्वारा बंधवाया हुआ सुंदर प्राचीन, मुलनायक श्री आदिनाथ संस्कृति धाम, विनियोग परिवार ट्रस्ट मुंबई से अरविन्दभाई पारेख की प्रेरणा एवं केतनभाई भगवानका मंदिर है। वहाँसे आगे लगभग १० किमी. पर लौद्रवा नामका प्राचीन स्थान है । वहाँ के प्रयत्न से आए हुए सेवाभावी युवकोंने एवं मुंबई से मिहिरभाई विनुभाई कांतिलाल एवं श्रेष्ठी श्री थाहरुशाहजी द्वारा बैंधवाया हुआ लौद्रवा पार्श्वनाथ भगवानका अत्यंत भव्य कला कौशल अन्य सेवाभावी सज्जनों तथा अहमदाबाद आदि से आये अनेक अनेक श्रायकोंने रात-दिन परिश्रम युक्त मंदिर है । मंदिर की भमतीमें बायीं ओर अष्टापदजी (समवसरण) मंदिर के उपर कल्पवृक्ष करके यह कार्य पूर्ण किया था । सभी साधु और सभी दस साध्वीजीयाँ तो इस कार्य में अत्यंत दर्शनीय है। वहाँके अधिष्ठायक नागराज (सर्प) संबंधी भी बहुत बातें प्रचलित हैं ।। प्रारंभ से ही रात-दिन लगे ही हुए थे । इन सब मंदिर, ग्रंथभंडार आदिकी व्यवस्था श्री जैसलमेर लौद्रयपुर पार्श्वनाथ जैन श्वेतांबर यह सर्व कार्य पूर्ण कर, यह सभी सामग्री जैन ट्रस्ट, जैसलमेर को दि. २८-१२-९८ के ट्रस्ट, जैन भवन, जैसलमेर की ओरसे हो रही है । दिन समर्पण करके एवं उसको व्यवस्थित रखकर हम ने दि. ३१-१२-९८ के दिन जैसलमेर अब ग्रंथभंडारोंकी बात पर आते है । से प्रस्थान किया और पोकरण-फलोदी-ओसियाँजी-नागोर-बिकानेर-दिल्ली होकर हस्तिनापुर तीर्थ में जैसलमेरमें हमने देव-गुरु-कृपा से जो कार्य किया उसकी संक्षिप्त रूपरेखा अक्षय तृतीया करके हरिद्वार में आकर हमने चतुर्मास किया है । अब इन्हीं बातों को विस्तार से देखें - चातुर्मास के लिए जैसलमेर में विक्रम संवत् २०५४ (मारवाडी २०५५) अषाढ शुक्ल ९ विक्रम संवत् २०५२ में हम अमदावादमें जैन सोसायटीमें चातुर्मास कर रहे थे तब जैन मी के दिन हमने प्रवेश किया । जैन ट्रस्ट की मीटींग सन् १९९८ के जुलाई के अंतिम सप्ताह ट्रस्ट-जैसलमेर के अध्यक्ष शेठश्री युद्ध-सिंहजी बाफना हमें मिलने आये और उन्होंने बिनति की में हुई और स्केनींग करने की विधिवत् संमति उसमें हमको दी गई । बाद में सभी मशीनरी कि आप जैसलमेर पधारो और ग्रंथभंडारको व्यवस्थित एवं सुरक्षित करो । अवसर आने पर जुटाने के बाद दि. ३-८-९८ के दिन स्केनींग के कार्य का कुछ ही प्रारंभ हुआ । ओगस्त सोचेंगे ऐसा कहकर उनकी बिनतिका स्वीकार करके हम वहाँ से कच्छमें गयें । वहाँ विक्रम १५, १९९८ करीब ही व्यवस्थित कार्य प्रारंभ हुआ । भिन्न भिन्न व्यवधान आते रहे । भंडार संवत् २०५३ का चातुर्मास नाना आसंबीया (ता. मांडवी, कच्छ) में करके संवत् २०५४ में श्री में से हमको कुछ कुछ थोडे थोडे ग्रंथ ट्रस्ट के रजिस्टर में लिखकर देते थे । उनका स्केनींग शंखेश्वरपार्श्वनाथके दर्शन करके संवत् २०५४ के पैत्र वदि ७ को यहाँ से प्रस्थान किया और करके वापस लौटाने के बाद कुछ दुसरे ग्रंथ हमको मिलते थे । इन सभी की दर्ज (Note) चैत्र बैशाख की सख्त रेगिस्तानी गरमी और अनेक बिच्छु आदि जहरीले जंतुओंके उपद्रोंसे ट्रस्ट के रजिस्टर में ट्रस्टीओं की सही (Signature) के साथ होती थी । मिन्न भिन्न कारणों गुजरते हुए वाव थराद-सांचोर-धोरीमणा-बाडमेर होते हुए जैसलमेर पहुँचे । वहाँ थोडे दिन रहकर | से कार्य में विलंब भी होता था । सात सात कोम्प्युटर्स लगवाए थे । कार्य तो किसी भी लौद्रवाजीकी यात्रा करके सं.२०५४ आषाढ सुदि नवमी के दिन जैन भवन, जैन ट्रस्ट, जैसलमेरम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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