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________________ AAAA जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग ग्रंथांक ग्रंथन नाम I स्थिति का भाषा संवत । पत्र संख्या । मेरोल सी.डी! ग्रंथान विशेष नोध १३८५ ..... | उबवाइसूत्र ..... ................ मध्य म .प्रा. ............ १६४९ ................. २९ .. १३८२ + १३८५.२८०.......... किनारी उंदरे खाघेली छे औपपातिकोपांगसूत्र सटीक ............ श्रेष्ठ .....अभयदेवसूरि -टी....... मा..सं... ........... १५...........१३८६- २८० त्रिपाठ अपूर्ण राजप्रश्नीयोपांगसूत्र ..... मध्यम प्रा.............१५९० .२०८९ राजप्रश्नीयोपांगसूत्रवृत्ति ................ श्रेष्ठ ..... मलयगिरि आचार्य -टी.. सं. ९३ १३८८ थी १३९०...२८०....३७०० राजपनीयोपांगसूत्र वृत्तिसह त्रिपाठ... श्रेष्ठ........ ९८ १३८८ थी १३९०...२८० जीवाभिगमोपांगसूत्र ...... ..मध्यम ....... ८५ १३८८ थी १३९०...२८० जंयूद्वीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र ... १६५१ ....१३९१ ...२८० १३९२ ...... जंबूदीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र ..... - किनारी उंदरे खाधेली छे. १३९३ ...... जंबूढीपप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र............. .१३१ ...................४१५४ १३९४ ...... सूर्यप्रज्ञप्तिउपांगसूत्र ............... मध्यम....... १०२ १३९५ ...... कल्पसूत्रकल्पलतावृत्ति ... श्रेष्ठ......समयसंदरोपाध्याय -....सं...........र. १६८५ १४० .....१३९५ ...२८१|....६३७८ कल्पसूत्र कल्पमंजरी टीका.. श्रेष्ठ..... सहजकीर्ति -टी...... .सं.र.१६८५-ले १७७१ |. १३९६.. १४३०.६.२८१ १३९७ ..... कल्पांतर्वाच्य अपूर्ण ... १३९८ ...... कल्पसूत्र भाषाटीकासह........ १५८६ कल्पसूत्र भाषाटीकासह ........ ..... भद्रबाहुस्वामी ... १७८७ कल्पसूत्र सस्तवक.. भद्रबाहुस्वामी १७४० कल्पसत्र सस्तवक अपूर्ण ............ भद्रबाहुस्थामी सूत्रकृतांगसूत्र तथा सूत्रकृतांगनियुक्ति .... भद्रबाहुस्वामी १४०३ उपासकदशांगसूत्र .............. १४०४ उपासकदशांगसूत्र ............. प्रा............. १७९८ १४०५ ... ..प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्र........... प्रा.......... ... १६६१ १४०६ प्रश्नव्याकरणदशांगसूत्रवृत्ति ...... अभयदेवसूरि १४०० --प्रश्नव्याकरण सस्तबक .... १४०८ समयायांगसूत्र अपूर्ण ... उपासकदशांगसूत्र सस्तबक ....... प्रा.गू. अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र ............. मध्यम .प्रा.+........... श्रेष्ठ श्रेष्ठ yor Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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