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________________ ८८५....... ८८६... -पड़. --प्रा. श्रेष्ठ.... ......र. ........... १८८६ जीर्णप्राया ...... श्रेष्ठ.... जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग | ग्रंथांक ग्रंथन नाम स्थिति भाषा संवत् । पत्र संख्या झेरोक्षसी .डी. ग्रंधान । __विशेष नोंध 1वीरचरित्रस्तोत्र........... श्रेष्ठ..... जिनवल्लभमणि ..........प्रा. चन्द्रप्रभस्वामिषड्भाषामयस्तोत्र... श्रेष्ठ..... ८८६ .२७२....गा.१३ जीवाभिगमोपांगसूत्र अपूर्ण ... तत्त्वार्थसूत्र सस्तबक अपूर्ण ..... उमास्वाति वाचक -मू....सं.गु. तत्वार्थसूत्र सस्तबक अपूर्ण....... उमास्वाति वाचक -मू... प्रा.गुशत्रुजयरास ......... श्रेष्ठ ..... समयसुंदरोपाध्याय ...... गुज... प्रति पाणीमां भीजाएली छे श्रीचंद्रीयसंग्रहणीप्रकरण ............ | श्रीचंद्रसूरि मू. .......... प्रा.गु. सस्तबक यंत्रसह ...कल्पसूत्र सस्तवक .. प्रा.गु............ १८४९ ............. एकविंशतिस्थानप्रकरण किंचिदपूर्ण.... सिद्धसेनसूरि ............ भर्तृहरित्रिशती सुखबोधिनीटीकासह... श्रेष्ठ.... भर्तृहरि -मू.. ............ . सं.र.१८१८-ले.१८७७ ...५०...८९४... ९१०.२७२....३००० श्रीनाथव्यास -टी....... प्रा.गु. आचारांगसूत्रद्वितीय श्रुतस्कंध बालावबोधसह पंचपाठ अपूर्ण श्रेष्ठ.. प्रा.गु................ रामचरित्ररास श्रेष्ठ ..... | केशराज मुनि. गुज. र.१६८३-ले.१९१५ सूत्रकृतांगसूत्र प्रथमभुतस्कंध सस्तबक प्रा.गु. सूत्रकृतांगसूत्र प्रथमस्कंध सस्तबक ... श्रेष्ठ .... प्रा.गु. ........... १९४८ १०५ ८९९ ....... सुभाषितसंग्रह ........................ जीर्ण ... सं.प्रा.गु, ९००......... अनुत्तरोपपातिकसूत्र वृत्ति .............. श्रेष्ठ.... अभयदेवसूरि -वृ.......... सं.. ....८९४... ९१० ९०१........ लघुस्तव टीका सह ................ मध्यम .. सोमतिलकसूरि -वृ. ...... सं.. २-१६ ... ८९४... ९१० - २७२/९०२..... दंडकप्रकरण तथा नवतत्त्वप्रकरण .... .प्रा. ... १५ सामायिकदोषनिवारणबत्रीसी....... प्रमोदमाणिक्य .......... गुज. ....२ ९०३/२ पीषधविधिस्वाध्याय अपूर्ण .......... मध्यम... गुज. २४ १९०४ .... -कुमतिउत्थापनचर्चा ............. ............. १४ ...८९४... ९१० १९०५.... लघुक्षेत्रसमासप्रकरण सस्तबक यंत्र स्थापना सह अतिजीर्ण रत्नशेखरसूरि मू....... प्रा.गु.-........... १७४२ म.गा.२६२ ९०६ .... जीवबिचारप्रकरण............... श्रेष्ठ .... शांतिसूरि ............... .प्रा.............. १९०९ गा.५१॥ २०७.........कल्पसूत्र अष्टभक्षण-वाचना ........... मध्य म ......... .................... गुज..................................... १७ ३-१११ ८२५ ४.१७ ९०३/१.. श्रेष्ठ .... Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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