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________________ जिनभद्रसूरि कागळनो हस्तलिखित ग्रंथ भंडार - जैसलमेर दुर्ग सी.डी) ग्रंथान विशेष नोंध १९-२३ ......गा.६४ मू.गा.६४ गा.E४ ५३६..... श्रेष्ठ..... गा.५८ गा.६१ ..७०० जीर्ण. HEEEEEE FREE .. ५४१ थी ५४९ ..५४१ थी .. ५४१ ५४१ थी ....३५१ .--...गा.६६ मू.गा.३८ का.१६१ ग्रंथांक ग्रंथर्नु नाम स्थिति कर्ता भाषा ५३३/३ ...... गौतमपृच्छा .............. श्रेष्ठ..... ......प्रा. ५३४ ...... गौतमपृच्छाप्रकरण सटीक त्रिपाठ..... श्रेष्ठ.....श्रीतिलक -वृ............ प्रा.सं. ५३५....... गौतमपृच्छा.. मध्यम.. दशवैकालिकसूत्र सावचूरिक पंचपाठ . श्रेष्ठ.. गाथासंग्रह कर्मस्तवकर्मग्रंथ(प्राचीन द्वितीय कर्मग्रंथ). श्रेष्ठ ..... 'कर्मविपाककर्मग्रंथ..................... मध्यम ... देवेंद्रसूरि ................ ५४०...... दशवकालिकसूत्र.. मध्यम .. शय्यंभवसूरि ... ५४१...... अनेकार्थध्वनिमंजरी-शब्दरत्नप्रदीप.... एकविंशतिस्थानप्रकरण .............. श्रेष्ठ .... सिद्धसेनसूरि ५४३...... विचारषटत्रिंशिका सस्तबक .........../जीर्ण ...गजसार ................. प्रश्नोत्तरषष्टिशतप्रकरण.............. जीर्ण .../जिनवल्लभगणि ५४५...... क्षुल्लकभवावलिकाप्रकरण सावसूरिक पंचपाठ....... जीर्णप्रायो...... .. सम्यक्त्वस्वरूपस्तवअवचूरि ............ तत्त्वार्थसूत्र भाष्यसह ............... श्रेष्ठ ..... उमास्वातिवाचक स्वोपज्ञ....................सं. ५४८ ........ तत्त्वार्थसूत्र ........................ श्रेष्ठ .... उमास्वाति वाचक. भवभावनाप्रकरण................... जीर्ण .... मलधारी हेमचंद्रसूरि ...... प्रा. ५५०....... सुभाषितश्लोक ......................... मध्यम.. ५५१...... -पाक्षिकक्षामणासूत्र ...................... मध्यम .. .................प्रा. ५५२ ......... सिद्धहेमशब्दानुशासनलघुवृत्ति .......... मध्यम .. हेमचन्द्राचार्य स्योपज्ञ ...... सं. प्रथमाध्याय ५५३ ....... सारस्वतव्याकरण बालायबोध सह अपूर्ण जीर्णप्राया ...... ................सं.गु ५५४ ..... योगवासिष्ठसार योगतरंगिणीटीका सह अपूर्ण .............................. श्रेष्ठ ..... सं.हि ५५५......... षष्टिशतप्रकरण बालावबोधसह ........ मध्यम ... नेमिचंद्र भंडारी -मू.. ...प्रा.गु. .....सोमसुंदरसूरि -बा. । ५४४ ...... म.गा.२५ श्रेष्ठ ......... ......१..५४१ थी .................५.. ५४१ थी ५४९ ५४७ ....... १६४२ ............. १६४२ .. ५४१ थी ५४९ ...२७१/....२२५० ५४१ थी ५४९ ... २७१/ ...५४१ थी ५४९ ...२७१. गा.५३१ १४९....... .प्रति पाणीमां भीजाएली के जैन टीका छे. .........र. .......५५४-५५५ .........गा.१६१ Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.018010
Book TitleJesalmer ke Prachin Jain Granthbhandaron ki Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year2000
Total Pages665
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size14 MB
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