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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती भांता ५७ पृ. ३२ वन्दित्तुसूत्र सह टीका, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र - नं.१-१०००. ग्रन्थ नथी. कुल झे. पृष्ठ-८, डीवीडी-७२/८१ भांता ६९ पे. क्र. १२, पृ. ९१-९६B आगमिकवस्तुविचारसारप्रकरण आदि संपूर्ण - " पे. विशेष- सूचीपत्रांक-१-९२०. प्रत विशेष- सूचीपत्र नं. २- १३३. कुल झे. पृष्ठ ४०, डीवीडी-७२/८२ पाकाहेम ४३६, पृ. १३१ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह चूर्णि - त्रुटक, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ ८८ पाकाहेम ४३७, पृ. ४१, श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र चूर्णि सहित वि-१५९४, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ- २८ पाकाहेम १०५५७, पृ. २०८, श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र अर्थदीपिकावृत्तिसह, वि-१७मी, संपूर्ण प्रत विशेष- प्रति एक खुणेथी उंदरे करडेली छे. पत्र १४५मुं डबल छे. पाकाहेम १४८९४, पृ. ९५ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णीसह वि-१४९८, संपूर्ण प्रत विशेष पत्र ३२ मुं नथी. . कुल झे. पृष्ठ - ९६ पाकाहेम १४९०५, पृ. १२३, श्रावकप्रतिक्रमणसूत्रसटीक अर्थदीपिकावृत्ति, वि- १५४९, संपूर्ण प्रत विशेष पत्र ९४ मुं नथी. कुल झे. पृष्ठ- १२३ भांका २७८, पृ. ४४ वन्दित्ताचूर्णि (श्रमणोपासक प्रतिक्रमणसूत्र सह चूर्णि), संपूर्ण " प्रत विशेष- सूचीपत्र नं. १-९२५, ३३, ४० पाना डबल छे. डीवीडी- ९० श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- (प्रा.) चूर्णि ( वन्दित्ताचूर्णि ) आचार्य - विजयसिंहसूरि, गुरु- मुनि शान्तिमुनि, प्रा. पद्य रचना सं. विक्रम ११८३ श्लोक ४५९०, आदि वाक्यः (१) सिद्धं सिद्धत्थसुर्य सुयधम्मपयासयं.. (२) वन्दित्वेति यदि अभिवादन.... पाकाहेम ४३६, पृ. १३१ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह चूर्णि - त्रुटक, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ- ८८ पाकाहेम ४३७, पृ. ४१ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र चूर्णि सहित वि-१५९४, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ- २८ पाकाहेम १४८९४ पृ. ९५ आवकप्रतिक्रमणसूत्रचूर्णीसह वि-१४९८, संपूर्ण प्रत विशेष पत्र ३२ मुं नथी. कुल झे. पृष्ठ-९६ भांका २७८, पृ. ४४ वन्दित्ताचूर्णि (श्रमणोपासक प्रतिक्रमणसूत्र सह चूर्णि ), संपूर्ण प्रत विशेष सूचीपत्र नं. १-९२५, ३३ ४० पाना डबल छे. डीवीडी- ९० श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-(सं.) वृत्ति आचार्य श्रीचन्द्रसूरि, गुरु- आचार्य-धनेश्वरसूरि, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम १२२२, ग्रं. १९५०, आदि वाक्यः श्रीवर्धमानमानम्य स्पष्टा वृत्तिर्विधीयते .... F " कृ.वि: विशिष्ट रचना प्रशस्ति. पातासंघवी १४३-१, पृ. १५४, श्राद्धप्रतिक्रमणवृत्ति, वि - १२९९, संपूर्ण डीवीडी-३५/५३ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-(सं.) वृत्ति मुनि पार्श्वसाधु, सं. पद्य रचना सं. विक्रम ९५५ श्लोक५७७ आदि वाक्यः देवेन्द्रवन्यचरणान् प्रणम्य भक्त्या जिनेन्द्रमुनीन्.... 733
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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