SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 539
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कृति उपरथी प्रत माहिती पाताहेसं १९२, पृ. २९७, प्रवचनसारोद्धारवृत्ति, संपूर्ण डीवीडी-१०/१९ भांता ४७, पृ. १८४, प्रवचनसारोद्धार की तत्त्वज्ञानविकाशिनी टीका - उत्तरार्द्ध, वि-१२६२, अपूर्ण प्रत विशेष- प्रत दो भागों में लिखी गयी है. मूलगाथा ८६६ व द्वारगाथा १३१ की टीका से आरंभ हुआ है. कुल झे.पृष्ठ-१८४, डीवीडी-७१/८० प्रवचनसारोद्धार-(सं.)विषमपदपर्याय टीका (विषमपदावबोध टीका), (विषमपदावबोध टिप्पनक) आचार्य-उदयप्रभसूरि, गुरु-आचार्य-माणिक्यप्रभसूरि, सं., गद्य, ग्रं.३२०३, आदि वाक्यः प्रवचनसारोद्धारे विषमपदार्थावबोधमाधत्ते श्रीउदयप्रभसूरिः... कृ.विः विशिष्ट रचना प्रशस्ति. जयप्रभ के सहयोग से रची गयी है. पाकाहेम ६७२४, पृ. ४२, प्रवचनसारोद्धार विषमपदपर्याय, वि-१५मी, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र १०मुं डबल छे. कुल झे.पृष्ठ-४३ भांका २४७, पृ. ४५, प्रवचनसारोद्वार-विषमपदावबोध टिप्पनक, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-३३०३. सुन्दर लिपि व यन्त्रस्थापना सहित. प्रतिलेखन पुष्पिका. सूचीपत्र नं.?. कुल झे.पृष्ठ-३०, डीवीडी-८९ प्रवचनसारोद्धार-(सं.)तत्त्वज्ञानविकाशिनीवृत्ति (तत्त्वज्ञानविकाशिनीवृत्ति) आचार्य-सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम १२४८, ग्रं.१८०००, आदि वाक्यः सन्नद्धैरपि यत्तमोभिरखिलैर्न स्पृश्यते कुत्रचित्... कृ.विः पाटन नवा सूचीपत्रमा कर्त्ता सिद्धर्षि लख्या छे. पातासंघवी १०१, पृ. २५२, प्रवचनसारोद्धारवृत्ति २२१मा द्वारथी सम्पूर्ण, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- छेल्ला पत्रनो टुकडो छे. डीवीडी-३३/५१ पातासंघवी ११५, पृ. ३१८, प्रवचनसारोद्धारवृत्ति तृतीयखण्ड, प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. डीवीडी-३३/५२ पातासंघवी १३२, पृ. २३१, प्रवचनसारोद्धारवृत्ति ६२ द्वार सुधी (भाग-१/२), प्रतिपूर्ण प्रत विशेष- सारी छे. कुल झे.पृष्ठ-११८, डीवीडी-३४/५२ पातासंघवी ७१-१, पृ. ३१७, प्रवचनसारोद्धारवृत्ति ६३ थी १५१ द्वार सुधी द्वितीयखण्ड, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र १५-१६-१७ना टुकडा उधईथी खवाया छे. डीवीडी-३१/५० पाताहेसं १०२, पृ. १७७, प्रवचनसारोद्धारटीका खण्ड-२, ४२-७२ पर्यन्त, प्रतिपूर्ण डीवीडी-७/१६ पाताहेसं १९२, पृ. २९७, प्रवचनसारोद्धारवृत्ति, संपूर्ण डीवीडी-१०/१९ भांता ४७, पृ. १८४, प्रवचनसारोद्धार की तत्त्वज्ञानविकाशिनी टीका - उत्तरार्द्ध, वि-१२६२, अपूर्ण प्रत विशेष- प्रत दो भागों में लिखी गयी है. मूलगाथा ८६६ व द्वारगाथा १३१ की टीका से आरंभ हुआ है. कुल झे.पृष्ठ-१८४, डीवीडी-७१/८० प्रवचनसारोद्धार-(सं.)विषमपदपर्याय टीका (विषमपदावबोध टीका), (विषमपदावबोध टिप्पनक) आचार्य-उदयप्रभसूरि, गुरु-आचार्य-माणिक्यप्रभसूरि, सं., गद्य, ग्रं.३२०३, आदि वाक्यः प्रवचनसारोद्धारे विषमपदार्थावबोधमाधत्ते श्रीउदयप्रभसूरिः... कृ.विः विशिष्ट रचना प्रशस्ति. जयप्रभ के सहयोग से रची गयी है. पाकाहेम ६७२४, पृ. ४२, प्रवचनसारोद्धार विषमपदपर्याय, वि-१५मी, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र १०मुं डबल छे. 522
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy