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मुनि- भारद्वाज, सं., गद्य,
तालाद ३२०, पृ. ४११, न्यायवार्त्तिक- तात्पर्यटीका, वि-१४८९, संपूर्ण
प्रत विशेष - १६२, १६७, १६८, १६९, १७०, १७३ नंबरना पाना नथी.. झे.
कुल पृष्ठ-३३२ डीवीडी- ९३/९५
न्यायसूत्रना (सं.)न्यायभाष्यनी (सं.) न्यायवार्तिक टीकानी (सं.) तात्पर्यवृत्ति (तात्पर्यवृत्ति)
जैनेतर वाचस्पति मिश्र, सं., गद्य,
तालाद ३२०, पृ. ४११, न्यायवार्त्तिक- तात्पर्यटीका, वि-१४८९, संपूर्ण
प्रत विशेष - १६२, १६७, १६८, १६९, १७०, १७३ नंबरना पाना नथी.
कुल पृष्ठ-३३२ डीवीडी- ९३/९५
झे.
न्यायसूत्रना (सं.)न्यायभाष्यनी (सं.) न्यायवार्त्तिकटीकानी (सं.) विवरणपञ्जिका टीका (न्यायवार्तिकभाष्यवृत्ति(सं.) विवरणपञ्जिका), (भाष्यवार्तिकवृत्तिविवरणपञ्जिका)
पण्डित-अनिरुद्ध, सं., गद्य, आदि वाक्यः स्यादेतत्प्रथमाध्याये प्रमाणादयः पदार्था उद्दिष्टाः यथोद्देशञ्च ....
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कृ. विः मूल भाष्य अने न्यायवार्तिक त्रणे उपर विवरण.
कृति उपरथी प्रत माहिती
न्यायसूत्रना (सं.) न्यायभाष्यनी (सं.) न्यायवार्तिक टीकानी (सं.) तात्पर्यवृत्ति (तात्पर्यवृत्ति)
जैनेतर - वाचस्पति मिश्र, सं., गद्य,
तालाद ३२०, पृ. ४११ न्यायवार्तिक- तात्पर्यटीका, वि-१४८९, संपूर्ण
प्रत विशेष- १६२, १६७, १६८, १६९, १७०, १७३ नंबरना पाना नथी.
कुल झे. पृष्ठ - ३३२, डीवीडी- ९३/९५
न्यायागमानुसारिणी टीका जुओ द्वादशार नयचक्र - ( सं . ) न्यायागमानुसारिणी टीका, आचार्य सिंहसूरि क्षमाश्रमण संस्कृत,
ग्रं. १८०००
न्यायार्थमञ्जूषा
न्यायावतारसूत्र
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गणि हेमहंसगणि, सं., पद्य, श्लोक १०९२,
पाकाहेम १०६८१, पृ. २०, न्यायार्थमञ्जूषा, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष १-२-३-४-५-८ प्रति पाणीथी भींजायेली छे,
कुल झे. पृष्ठ-१४
आचार्य सिद्धसेन दिवाकर सुरि, पातासंघवी १४६-१- पे.क्र. ६
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कुल झे. पृष्ठ- १०
न्यायावतारसूत्र - (सं.) टीका
सं. पद्य, श्लोक३२ आदि वाक्यः प्रमाणं स्वपरामासि ज्ञान बाधविवर्जितः....
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डीवीडी-३५/५३
पातासंघवी १७१-२- पे. क्र. १ पृ. १-२ न्यायावतारसूत्र आदि, संपूर्ण
पृ. १३३-१३४, तर्कभाषा आदि संपूर्ण
प्रत विशेष कोई पानानी कोरो खरी गई छे.
कुल झे. पृष्ठ ४०, डीवीडी - ३६/५४
पाकाहेम १६७९४- पे.क्र. २, पृ. ५-६, प्रशस्तपादभाष्य-द्रव्यपदार्थ, न्यायावतारादि सङ्ग्रह, संपूर्ण
मुनि - सिद्ध साधु, सं. गद्य,
पातासंघवी १७१-२- पे. क्र. ४. पृ. १६८, न्यायावतारसूत्र आदि संपूर्ण
पे. विशेष- गायकवाडी नंबर १२२(१) अने २४१(३) आपेलो छे., त्रुटक, अपूर्ण, कोरो एक बाजुनी खरी गई
छे.
प्रत विशेष कोई पानानी कोरो खरी गई छे,
कुल झे. पृष्ठ ४०, डीवीडी-३६/५४
पाकाहेम २४४८- पे.क्र. १, पृ. १-२८, न्यायावतारवृत्ति आदि, वि-१६मी, संपूर्ण
कुल झे. पृष्ठ-४१
पाकाहेम ६८०८, पृ. ३३, न्यायावतारविवरण, वि-१६वी, संपूर्ण
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