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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती जीतकल्पसूत्र-(प्रा.)स्वोपज्ञ भाष्य गणि-जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, गा.२६०६, आदि वाक्यः पवयण दुवालसङ्गं सामाइयमाइ बिन्दुसारन्तं... पातासंघवी ५८-१, पृ. १३०, जीतकल्पसूत्र सह स्वोपज्ञ भाष्य, अपूर्ण प्रत विशेष- पुण्यविजयजी द्वारा संपादित मुद्रित प्रत की तुलना में इस प्रत में मूल व भाष्यगाथाक्रम कम है. इनकी प्रस्तावना से स्पष्ट होता है कि पुण्यविजयजी ने इस प्रत का उपयोग संपादन में नहीं किया है. आद्यन्त भाग अपूर्ण. मूलगाथा-८ से मिल रही है. कुल झे.पृष्ठ-८७, डीवीडी-२९/४८ जीतकल्पसूत्र-(प्रा.)चूर्णि प्रा.,सं., गद्य, आदि वाक्यः पगयवयणं ति वा पहाणवयणं ति वा पसत्थवयणे... पाताहेसं १४९- पे.क्र. १, पृ. १०४, जीतकल्प चूर्णिसहित आदि त्रुटक-अपूर्ण, अपूर्ण पे. नाम- जीतकल्पसूत्र सह (प्रा.)चूर्णि प्रत विशेष- गायकवाड केटलॉगमां १०४ पत्रनी आ एकज कृति छे, नवी सूचीमां अहीं नाममां 'आदि'शब्दथी __ शुं ग्रहण करवू? कुल झे.पृष्ठ-२४, डीवीडी-८/१७ जीतकल्पसूत्र-(प्रा.)चूर्णी आचार्य-सिद्धसेनसूरि, प्रा., गद्य, ग्रं.११००, आदि वाक्यः सिद्धत्थसिद्धसासणसिद्धत्थसुयं... भांता ३४, पृ. ७९, जीतकल्पसूत्र चूर्णि, वि-१३मी, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.१-५९६. डीवीडी-६९/७८ भांता ३५, पृ. ८५, जीतकल्पूसत्रचूर्णि, वि-१२मी, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.१-५९५. डीवीडी-६९/७८ पाकाहेम १००५७, पृ. १८, जीतकल्पसूत्र चूर्णि, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-१३००. कुल झे.पृष्ठ-२८ पाकाहेम १४९१०, पृ. २१, जीतकल्पचूर्णी, वि-१५३८, संपूर्ण जीतकल्पसूत्रनी (प्रा.)चूर्णीनुं (सं.)टिप्पनक (विषमपद व्याख्या), (विषमपद टिप्पण) आचार्य-श्रीचन्द्रसूरि, गुरु-आचार्य-धनेश्वरसूरि, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम १२२७, ग्रं.११२०, आदि वाक्यः नत्वा श्रीमन्महावीरं स्वपरोपकृति हेतवे... पाताहेसं १४९- पे.क्र. १, पृ. ???, जीतकल्प चूर्णिसहित आदि त्रुटक-अपूर्ण, अपूर्ण पे. नाम- जीतकल्पसूत्र सह (प्रा.)चूर्णि प्रत विशेष- गायकवाड केटलॉगमां १०४ पत्रनी आ एकज कृति छे, नवी सूचीमां अहीं नाममां आदि शब्दथी शुं ग्रहण करवू? कुल झे.पृष्ठ-२४, डीवीडी-८/१७ पाकाहेम १००५८, पृ. १७, जीतकल्पसूत्र चूर्णि विषमपदव्याख्या, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-१८ जीतकल्पसूत्रचूर्णिगतसिद्धत्थेत्यादि-(सं.)विवरण सं., गद्य, आदि वाक्यः शास्त्रारम्भे विघ्नोपशमनायेष्टदेवता १ गणधर २ स्थविर ३ प्रवचनानां यथाक्रमं|... कृ.विः कर्ता? चूर्णिनो हिस्सो छे? भांता ३६- पे.क्र. ३, पृ. १३-१८, जीतकल्पसूत्र व सिद्धत्थेत्यादिविवरण, संपूर्ण पे. विशेष- सूचीपत्रांक-१-५९७. प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.१-५९१, १-५९७. डीवीडी-६९/७८ जीतकल्पसूत्र-(प्रा.)भाष्य 294
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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