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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती डीवीडी-६९/७८ जीतकल्पसूत्र-(प्रा.)चूर्णि प्रा.,सं., गद्य, आदि वाक्यः पगयवयणं ति वा पहाणवयणं ति वा पसत्थवयणे... पाताहेसं १४९- पे.क्र. १, पृ. १०४, जीतकल्प चूर्णिसहित आदि त्रुटक-अपूर्ण, अपूर्ण पे. नाम- जीतकल्पसूत्र सह (प्रा.)चूर्णि प्रत विशेष- गायकवाड केटलॉगमां १०४ पत्रनी आ एकज कृति छे, नवी सूचीमा अहीं नाममां 'आदि'शब्दथी शुं ग्रहण करवू? कुल झे.पृष्ठ-२४, डीवीडी-८/१७ जीतकल्पसूत्र-(सं.)वृत्ति आचार्य-तिलकसूरि, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम १२७४, ग्रं.१८००, आदि वाक्यः वन्दे वीरं तपोवीरं तपसादुस्तपेनन यः... पाताखेत ४५- पे.क्र. २, पृ. १-१४१, लिङ्गानुशासनविवरण, जीतकल्पवृत्ति, वि-१२९२, संपूर्ण पे. नाम- जीतकल्पसूत्र सह तिलकसूरीय टीका, पे. विशेष- श्रीमानतुंगसूरिना शिष्य पंडित गुणचन्द्रजीए सं.१२९२ मां आ प्रत लखावीने आचार्य श्री अभयदेवसूरिने आपेल छे. प्रत विशेष- पत्र-२१८+१४१=३५९. कुल झे.पृष्ठ-१२८, डीवीडी-६२/६४ पातासंघवी १९- पे.क्र. ८, पृ. ३२४-३५८, महानिशीथसूत्र आदि, वि-१४५६, संपूर्ण पे. विशेष- वचला अने छेल्ला पानाना टुकडा छे., लेखन संवत-१४५६. स्तम्भतीर्थे. डीवीडी-२२/४१ पाताहेसं १७३- पे.क्र. १, पृ. १-१४९, जीतकल्पसूत्रवृत्ति आदि छ ग्रन्थो, संपूर्ण डीवीडी-९/१९ पाकाहेम ८५७, पृ. ३५, जीतकल्पसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-३६ पाकाहेम १००५९, पृ. २६, जीतकल्पसूत्र वृत्तिसहित, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-२७ पाकाहेम १०३२३- पे.क्र. १, पृ. १-३१, जीतकल्पवृत्तिसहितआदि, वि-१६मी, संपूर्ण - प्रत विशेष- पत्र २०मुं डबल छे. वृत्ति रचना संवत १२०० आपेल छे. कुल झे.पृष्ठ-३४ पाकाहेम १४०२६, पृ. २८, यतिजितकल्प वृत्तिसह, वि-१६२६, संपूर्ण भांका ११७, पृ. ६२, जीतकल्पसूत्र विवरणलवसहित, वि-१६११, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र नं.१-५९२. वृत्तिकर्ता श्री श्रीतिलकसूरि आपेल छे. डीवीडी-८४ जीतकल्पसूत्र-(सं.)वृत्ति सं., गद्य, ग्रं.६७७३, आदि वाक्यः जयति महोदयशाली... कृ.विः यतिजीतकल्पनी साधुरत्नसूरि कृत टीकार्नु अने आनुं आदिवाक्य भिन्न छे पण ग्रन्थाग्र जुदा छे. भांका २१८, पृ. १२०, जीतकल्पसूत्र विवृत्ति सह, संपूर्ण प्रत विशेष- सूचीपत्र नं.१-५९३. , गाथा-१०७. टीका ग्रन्थाग्र-६७७३. डीवीडी-८७ जीतकल्पसूत्र-(सं.)पर्याय सं., गद्य, पाकाहेम ७१११- पे.क्र. १४, पृ. २८-३०, सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-८४ पाकाहेम ७१११- पे.क्र. २९, पृ.७८-८२, सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-८४ 293
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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