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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती चैत्यवन्दनकुलक-(सं.)विवृत्ति कथासहित आचार्य-जिनकुशलसुरि, सं., गद्य, रचना सं. विक्रम १३८३, ग्रं.४४००, आदि वाक्यः (१) श्रेयांसि बहुविघ्नानि ___ भवन्ति महतामपि...(२) संस्तौमि श्रीमहावीरं जिनं कामप्रवर्द्धनम्..... भांता ७१, पृ. १-४२A, चैत्यवन्दनकुलक विवृत्ति सह, वि-१३८८, अपूर्ण __ प्रत विशेष- सूचीपत्रांक-१-१२१६. पा. नं. ५८ बे वखत छे. ५८ अने ५८A. पत्र २ मां साधुनुं चित्र. ___ कुल झे.पृष्ठ-७२, डीवीडी-७२/८२ पाकाहेम १०१२, पृ. ८८, चैत्यवन्दनकुलक वृत्तिसहित, संपूर्ण प्रत विशेष- गाथा-२८. कुल झे.पृष्ठ-८७ चैत्यवन्दनगाथा (वन्दनसूत्र), (वन्दणसुत्त) प्रा., पद्य, गा.५९, आदि वाक्यः भावजिणे दव्वजिणे ठवणजिणे नामजणवरे नमिउं... कृ.विः अंतिमवाक्य-तत्तो य कम्मनासं पणट्ठकम्मोय निव्वाणं. पाताहेसं १०५- पे.क्र.५, पृ. १४७अ-१५३आ, स्थविरावलिवृत्तिसह आदि, अपूर्ण पे. विशेष- संपूर्ण. झेरोक्ष पत्र-३९-४२. प्रत विशेष- पत्र-३२-६५ नहीं है. कुल झे.पृष्ठ-४२, डीवीडी-७/१६ भांता ७०- पे.क्र.७, पृ. ६A-८B, अर्हत्स्तोत्र आदि - विचारसङ्ग्रहपोथी, वि-१३७८, संपूर्ण पे. विशेष- सूचीपत्रांक-१-१२७८. सूचीपत्रांक-१-१३१८ मां पण आनी विगत बेवडाई छे. प्रत विशेष- सूचीपत्र-नं.३-१५. पत्र-२५२+२-१=२५३., पेटाङ्क-१७३ अन्तर्गत समग्र ग्रन्थप्रमाण आपेल छे. कुल-४२०० श्लोक. अन्तमां पत्रांक २५०A-२५२A उपर प्रतस्थ कृतियोंनी अनुक्रमणिका आपेली छे. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. कुल झे.पृष्ठ-७६, डीवीडी-७२/८२ चैत्यवन्दनपदपर्यायमञ्जरी आचार्य-अकलङ्कदेवसूरि, सं., गद्य, पाकाहेम ६९४४- पे.क्र. १, पृ.?, चैत्यवन्दनपदपर्यायमञ्जरी त्रुटक आदि, वि-१५०१, अपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-६ चैत्यवन्दनभाष्य आचार्य-देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, गा.६३, आदि वाक्यः तिण्णि निसिही... पातासंघवीजीर्ण ८६-२- पे.क्र. १, पृ. १-६, चैत्यवन्दनादि भाष्य आदि, वि-१३६९, त्रुटक कुल झे.पृष्ठ-६० पातासंघवी २०२- पे.क्र. १०, पृ. २४४-२५३, पुष्पमाला आदि, संपूर्ण डीवीडी-३८/५५ पुप्रे ४४०, पृ. २८८, चैत्यवन्दनभाष्य सह सङ्घाचारवृत्ति व दृष्टान्तकथा, अपूर्ण प्रत विशेष- प्रत नं.४४१ इस प्रत से संबंधित भाग होना चाहिये. कुल झे.पृष्ठ-३२१ पुप्रे ४४१, पृ. २५४, चैत्यवन्दनभाष्य सह सङ्घाचारवृत्ति व दृष्टान्तकथा, अपूर्ण प्रत विशेष- प्रत नं.४४० इस प्रत से संबंधित भाग होना चाहिये. कुल झे.पृष्ठ-२५४ पुप्रे ४४३, पृ. ४०७, चैत्यवन्दनभाष्य सह सङ्घाचारवृत्ति व दृष्टान्तकथा, संपूर्ण प्रत विशेष- लहिया द्वारा लिखी गयी प्रति. पत्र-२४० व २९२ नहीं है. कुल झे.पृष्ठ-४०७ चैत्यवन्दनभाष्य-(सं.)सङ्घाचारटीका (सङ्घाचारटीका) आचार्य-धर्मघोषसूरि, सं., गद्य, ग्रं.७८०८, आदि वाक्यः देवेन्द्रवृन्दस्तुतपादपद्मः स्वर्भूर्भुवःश्रीवरकेलिसद्म।... पातासंघवी ८७, पृ. २५६, सङ्घाचारभाष्य, संपूर्ण 265
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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