SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कृति उपरथी प्रत माहिती सं. गद्य, आदि वाक्यः यत् पल्लवे न विवृतं दुर्बोधं मन्दबुद्धिभिश्वापि क्रियते कल्पलतायां तस्य विवेकोऽयमतिसुगमः । ... पातासंघवीजीर्ण ३०, पृ. ३२५ काव्यकल्पलताविवेक त्रुटित पत्र ५५ त्रुटक प्रत विशेष- अति जीर्णने वचमां घणा ज टुकडा छे-माटे नकामी पत्र २५माना टुकडा छे. शब्दालंकार, अर्थालंकार (परिमलना भाव ) डीवीडी-५६/५९ कविशिक्षा - (सं.) काव्यकल्पलता वृत्तिनी काव्यकल्पलता परिमल टीका (काव्यकल्पलता परिमल टीका ) आचार्य अमरचन्द्रसूरि, सं. गद्य, आदि वाक्यः श्रीशारदां हृदि ध्यात्वा विख्यातं परिमलाख्याया.... " पाकाहेम ९७९, पृ. ३९, काव्यकल्पलतावृत्ति परिमल, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ-४० पाकाहेम २५४३, पृ. ६६, कविशिक्षाकाव्यकल्पलता परिमल वृत्ति, वि-२०मी, संपूर्ण कुल झ. पृष्ठ-६५ झे. पाकाहेम २६४६, पृ. ९२, काव्यकल्पलतावृत्ति परिमल, वि-१७मी, अपूर्ण प्रत विशेष अपूर्ण - कुल झे. पृष्ठ-९२ कविशिक्षा-(सं.)काव्यकल्पलता टीकानी (सं.) काव्यकल्पलतामकरन्द टीका (काव्यकल्पलतामकरन्द टीका ) - शुभशील, सं., गद्य रचना सं. विक्रम १६६५, पाकाहेम १२९५८ पृ. ६४ काव्यकल्पलतावृत्तिमकरन्द वि १७२९. संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र ५४ थी ५७ नथी. कुल झ. पृष्ठ-६० कविशिक्षा - (सं.) काव्यकल्पलता टीका (काव्यकल्पलता टीका), (कविकल्पलता टीका) आचार्य - अमरचन्द्रसूरि, सं., गद्य, ग्रं. ३३५७, पाकाहेम १०२१४, पृ.७४ काव्यकल्पलता कविशिक्षावृत्तिसह वि-१७मी, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ-७४ पाकाहेम १०३८५, पृ. ४३, काव्यकल्पलता - कविशिक्षावृत्तिसह, वि-१५०१, संपूर्ण झे कुल झ. पृष्ठ-४३ कविशिक्षा-(सं.)काव्यकल्पलताटीकानी (सं.) कल्पलताविवेक टीका ( कल्पपल्लवशेष), (कविकल्पलतापल्लवशेषविवेक), (कल्पलताविवेक टीका ) सं., गद्य, आदि वाक्यः यत् पल्लवे न विवृतं दुर्बोधं मन्दबुद्धिभिश्चापि । क्रियते कल्पलतायां तस्य विवेकोऽयमतिसुगमः । ... पातासंघवीजीर्ण ३०, पृ. ३२५. काव्यकल्पलताविवेक त्रुटित पत्र ५५ त्रुटक प्रत विशेष - अति जीर्णने वचमां घणा ज टुकडा छे-माटे नकामी पत्र २५माना टुकडा छे. शब्दालंकार, अर्थालंकार (परिमलना भाव ) डीवीडी-५६/५९ कविशिक्षा-(सं.)काव्यकल्पलता वृत्तिनी काव्यकल्पलता परिमल टीका (काव्यकल्पलता परिमल टीका) आचार्य अमरचन्द्रसूरि, सं. गद्य, आदि वाक्यः श्रीशारदां हृदि ध्यात्वा विख्यातं परिमलाख्यया..... पाकाम ९७९, पृ. ३९ काव्यकल्पलतावृत्ति परिमल, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ-४० पाकाहेम २५४३, पृ. ६६ कविशिक्षाकाव्यकल्पलता परिमल वृत्ति, वि-२०मी, संपूर्ण कुल झे. पृष्ठ-६५ पाकाहेम २६४६, पृ. ९२ काव्यकल्पलतावृत्ति परिमल, वि-१७मी अपूर्ण प्रत विशेष अपूर्ण कुल झ. पृष्ठ ९२ कविशिक्षा - (सं.) काव्यकल्पलता टीकानी (सं.) काव्यकल्पलतामकरन्द टीका (काव्यकल्पलतामकरन्द टीका ) गणि शुभशील, सं. गद्य रचना सं. विक्रम १६६५. 187
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy