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________________ कृति उपरथी प्रत माहिती मुनि-गोपालिक महत्तर शिष्य, प्रा., गद्य, ग्रं.५८५५, पाकाहेम ६५३०, पृ. १०८, उत्तराध्ययनसूत्रचूर्णि, वि-१४९३, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-५९९०. कुल झे.पृष्ठ-१०८ पाकाहेम ६५४६, पृ. ८४, उत्तराध्ययनसूत्रचूर्णि, वि-१४८६, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-५८५०. पत्र २६K डबल छे. कुल झे.पृष्ठ-८६ पाकाहेम १००८०, पृ. ७४, उत्तराध्ययनसूत्र चूर्णि, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- ग्रन्थाग्र-५८५०. कुल झे.पृष्ठ-७४ पाकाहेम १४८९२, पृ. १५०, उत्तराध्ययनसूत्रचूर्णी, वि-१६मी, संपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र-(सं.)बृहद्वृत्ति (पाइयटीका) आचार्य-शान्तिसूरि वादिवेताल, सं.,प्रा., पद्य, श्लोक१३३४५, आदि वाक्यः शिवदाः सन्तु तीर्थेशा विघ्नसङ्घातघातिनः।... कृ.विः मूल साथे ग्रन्थान-१८०००. पातासंघवी २- पे.क्र. २, पृ. १-२३५, उत्तराध्ययनसूत्रनियुक्ति, पाईयटीका पूर्वार्ध, वि-१४८९, प्रतिपूर्ण पे. नाम- उत्तराध्ययनपाईयटीका-पूर्वार्द्ध प्रत विशेष- डुंगरपुरमां गजपाल राजाना राज्यमां लखाव्युं छे. डीवीडी-२०/३९ पातासंघवी ३, पृ. २२७, उत्तराध्ययनपाईयटीका उत्तरार्ध, वि-१४८९, संपूर्ण डीवीडी-२०/३९ पाताहेसं २६, पृ. ४०१, उत्तराध्ययनसूत्र पाईयटीकासहित, संपूर्ण डीवीडी-३/१३ पाताहेसं २७- पे.क्र. २, पृ. १-३६८, उत्तराध्ययनसूत्र पाईय टीका, वि-१३४३, संपूर्ण पे. विशेष- त्रुटित. डीवीडी-३/१३ पाकाहेम १००८१, पृ. २९२, उत्तराध्ययनसूत्र पाइयटीकासह, वि-१६मी, संपूर्ण प्रत विशेष- पहेला अने बीजा पत्रमा क्र. ९९९०ना टिप्पणना जेवां चित्रो छे. पत्र रजु ३जुं १८७मुं २०७मुं डबल छे अने २०४-२०५ भेगां छे. कुल झे.पृष्ठ-२९१ पाकाहेम १४७९०, पृ. २३४, उत्तराध्ययनसूत्र बृहद्वृत्ति-पाइयटीका, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-२३७ पाकाहेम १४८५२, पृ. ३३१, उत्तराध्ययनसूत्रबृहद्वृत्ति पाईयटीका, वि-१५३८, संपूर्ण प्रत विशेष- पत्र १०७-१०८ भेगा छे. अने २१४मुं पत्र डबल छे. कुल झे.पृष्ठ-३३१ पाकाहेम १४८८९, पृ. ५०५, उत्तराध्ययनसूत्रबृहद्वृत्ति पाइयटीका, वि-१६मी, संपूर्ण पाकाभाभा ३४, पृ. ३१४, उत्तराध्ययन बृहवृत्ति, वि-१६२८, संपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्रनी (सं.)बृहद्वृत्तिनो (सं.)पर्याय सं., गद्य, पाकाहेम ७१११- पे.क्र. २१, पृ. ५५-६०, सर्वसिद्धान्तविषमपदपर्याय, वि-१६मी, संपूर्ण कुल झे.पृष्ठ-८४ उत्तराध्ययनसूत्र-(सं.)बृहवृत्तिनो हिस्सो (सं.)सवस्त्रधर्मव्यवस्थापनावादस्थल (सवस्त्रधर्मव्यवस्थापनावादस्थलउत्तराध्ययनसूत्र पाइय टीकागत) सं., गद्य, 95
SR No.018002
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages895
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size6 MB
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