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________________ (भांका) भांडारकर ईन्स्टिट्युट-पूना भांडारकर ईन्स्टिट्युट-पूना (कागळ) स्थिति पूर्णता प्रत नाम (पेटा नंबर). पेटा नाम कृति नाम क्लिन/ओरिजिनल डीवीडी (डीवीडीझे.पत्र/ो.पत्र) कृति प्रकार प्रतविशेष माप पंक्ति, अक्षर, प्रतिलेखन स्थल पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष । कृति विशेष, पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष माषा परिमाण रचना वर्ष आदिवाक्य जीर्ण संपर्ण कागज (जुनो नं. १८७५-७६/७३६)७-९७ नथी. ९०(२७) गद्य २८० पञ्चवस्तु पर्याय पञ्चवस्तुकप्रकरण-पर्याय २८१ : संवादसुन्दर अवचूर्णि संवादसुन्दर-अवचूर्णि २८२ जिनदत्तकथा समुच्चय : जीर्ण संपर्ण कागज ९०(६). (जनो नं. १८७५-७६/७३४) :वि.१६३८ जीर्ण संपूर्ण कागज वि. १६१११०४ ९०(५२) (जुनो नं. १८७५-७६/७१९)सूचीपत्रक्रम-४-९५३. विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिका. ग्रन्थान-१०९०./पत्र ४४ नथी..(१०.७४३.५, ७२४) लेखन स्थल : चासू अं.वाक्य-अत्र प्रमाणं प्रथितं समस्त..निःसंशयं विद्भिरमुख्यसारं. (जुनो नं. १८७५-७६/७१०) : जिनदत्तकथासमुच्चय महामोहतमश्छन्नभुवना : पद्य गुणभद्रसूरि (दिगम्बर) जीर्ण सर्ग ९ ग्रं. :१०९० कागज संपूर्ण ............. . वि.२०वी । ९०(४)......... गद्य ॐ ऋषभ पवित्र २८३ वेदपुराणमध्ये जैनशास्त्रश्लोक वेदपुराणोक्त ऋषभादिजिनोल्लेख सन्दर्भश्लोक : स्याबादचूलिका सटीक २८४ जीर्ण कागज १९१(२८) श्लोक ३२ अत्र स्याद्वादशुद्ध पद्य (जुनो नं. १८७५-७६/६९६)ग्रन्थान-७८४. अन्त में श्लोकानुक्रमणिका दी गयी है. कुन्दकुन्दाचार्य रचित समयससार की समाप्ति विषयक उठे विचारस्वरूप यह कृति बनायी गयी है. भाषा-प्राचीन हिन्दी. (जुनो नं. १८७५-७६/६५८). हीरविजयसूरि विजयराज्ये विरचितं. भयः अपि मनाक जीर्ण संपर्ण कागज स्याद्वादचूलिका अमृतचन्द्राचार्यसं. (दिगम्बर) स्थाद्वादचूलिका-भाषाटीका २८५ युक्तिप्रकाशसूत्र स्वोपज्ञवृत्ति सह युक्तिप्रकाश युक्तिप्रकाश-स्वोपज्ञ विवरण २८६ : दृष्टिवाद, षड्दर्शनसमुच्चय सह लघुटीका जीर्ण संपूर्ण व तर्कसङ्ग्रह की तर्कदीपिका टीका .... (पे.१) दृष्टिवाद ९१४) श्लोक २८ प्रणपत्यज्यक्तभक्त्य पदमसागर प्रणम्य श्रीमहावीर कागज ४२ ९१(४२) (जुनो नं. १८७५-७६/६१०) वन्दित्वा परमात्मानं (पे.पृ. १) पे.वि. : अपूर्ण, प्रतिलेखक की भूल से इसमें प्रारंभिक मंगलाचरण पाठ के बाद षड्दर्शनसमुच्चय-लघुटीका संलग्न हो गयी है. दृष्टिवाद प्रारंभमात्र ही है. (पे. पृ. १-३१०) पे.वि. : पूर्ण. प्रतिलेखक की भूल से इस कृति में दृष्टिवाद का प्रारंभिक भाग लिखा गया है. प्रस्तुत कृति की तीसरी कारिका की आधी टीका एवं चौथी कारिका सटीक से अन्त तक का । (पे.२) षड्दर्शनसमुच्चय सह लघुटीका
SR No.018001
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages582
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size38 MB
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