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________________ ग्रंथांक स्थिति पूर्णता प्रत नाम (पेटा नंबर). पेटा नाम कृति नाम (पाकाहेम) पाटण कागळ प्रतोनो भंडार प्रत प्रकार प्रतिलेखन वर्ष पत्र परिमाण रचना वर्षआदिवाक्य क्लिन/ओरिजिनल डीवीडी (डीवीडी- प्रतविशेष, माप, पंक्ति, अक्षर, प्रतिलेखन स्थल पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष कृति विशेष, पेटांक पृष्ठ, पेटा विशेष कर्ता भाषा कति प्रकार क्षेमकीर्ति जीर्ण १०३१९ व्यवहारसूत्र कागज वि. १६मी (७) ग्रन्थान-५००..(१३.५४५) भद्रबाहुस्वामी १०३२०व्यवहारसूत्र वि. १६मी जे भिक्खू मासियं ८ जे भिक्खू मासियं ........... ग्रन्थान ५०० छे...(१३.५४५) ग्रं.६८८ :कागज ग्रं.६८८ कागज गा.८१२ भद्रबाहस्वामी १०३२१ : निशीथसूत्र...... वि.१क्ष्मी संपूर्ण प्रा. भद्रबाहस्वामी जे मिक्ख हत्थकम्म (१३)...............(१३.५४५).................. पद्य (१३५) (१३.५४५.५) पद्य (पे.पृ.१-१२३) मध्यम प्रतिपूर्ण कागज वि.१हमी निशीथसूत्र चूर्णि द्वितीयखण्ड (पे.१) निशीथसूत्र-विशेष चूर्णि १3५ प्रा. णमिऊण रहन्ता] सिद्ध जिनदास गणि क्षमाश्रमण श्रीचन्द्रसूरि श्लोक २८००० ग्रं. १७८८४ श्लोक ११०० वि. ११४ प्रणम्य वीर सुरवन्द पद्य (पे.पृ. १२३-१३५) (पे.२) निशीथसूत्र-विशेषचूर्णीनी विंशोदेशकव्याख्या जीतकल्पवृत्तिसहितआदि १०३२३ मध्यम संपूर्ण कागज :वि.१६मी (३४) (पे.१) जीतकल्पसूत्र प्रा. गा. १०५ ग्रं. १३०: कयपवयणप्पणामो वोच्छं: पद्य जिनभद्र गणि क्षमाश्रमण पत्र २०, डबल छे. वृत्ति रचना संवत १२०० आपेल छे., (१३.५४५.५) (पे.पृ. १-३१) [कृ.वि. : हस्तप्रतसूचीओमां जीतकल्प, यतिजीतकल्प अने आबकजीतकल्पमां घणी वखत परस्पर अस्पष्टताओ रहेल छे] ग्रं.१८०० . वि. १२७४ गद्य तिलकसूरि तिलकसूरि वन्दे वीरें तपोवीरें सिरिवीरजिणं नमिउं गा.३८ ..(पे.पू. ३१-३३) क वि. : प्रायश्चित्त] जीतकल्पसूत्र-वृत्ति (प.२) श्रावकसामाचारीप्रकरण आद्धलघुजीतकल्प-वृति दशकालिकसूत्रनियुक्ति दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति १०३२५. तपोयन्त्रविचार तिलकसरि जीर्ण संपर्ण कागज वि. १६मी भद्रबाहस्वामी गा. ४४०.४४६ :सिद्धगतिमवगयाणं गाथा-४४२., (१३.५४५.२) गाथा संख्यामां थोडुक वैविध्य मळे छे. (१३४५.२) संपण कागज वि.१६मी १०३२६ : आलोचनाविधि आदि संपूर्ण कागज वि.१६मी (१३.५४५.२) संपूर्ण वि.१६मी (१०) १०३२७ । पिण्डविशुद्धिप्रकरणदीपिका पिण्डविशुद्धिप्रकरण-दीपिकावृत्ति ..... १०३२८ कर्मग्रन्थपञ्चकावचूरि. उदयप्रभसार . (१३.५४५.५) यशोदेवसूरि कृत टीका आधारित.... ..........(१३.५४५.५). :संपण वि.१२९५ तं नमत श्रीवीरं .............वि. १४८६....३३ :कागज 457
SR No.018001
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages582
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size38 MB
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