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________________ -: प्रत माहिती से कृति माहिती :यह सूची प्रत क्रमांक के अनुक्रम से है. इसमें सूचनाएँ दो स्तरों पर दी गई हैं. (1) प्रत माहिती (2) संबद्ध कृति माहिती. • प्रत माहिती स्तर इस स्तर पर प्रत संबंधी सूचनाएँ विस्तार से दी गई हैं. प्रथम पंक्ति (क) प्रत क्रमांक : प्रत्येक प्रत का यह स्वतंत्र क्रमांक है. (ख) प्रतनाम : प्रत में मात्र एक ही कृति या संयुक्त कृति परिवार के अंश हों (पेटा कृति का मामला न बनता हो) तो इसमें कृतिनाम यथा नियम/यथायोग्य सह आदि से युक्त आएगा. यथा कल्पसूत्र हेतु 'बारसासूत्र' या पर्युषणा कल्प' ऐसा नाम प्रत में दिया हो तो वही नाम यहाँ पर आएगा. जब कि द्वितीय कृति स्तर पर तो कृति का जो प्रधान नाम- 'कल्पसूत्र' होगा वही आएगा. इसी तरह 'अइमुत्तारास' की जगह 'एमंता रास' यह नाम होगा तो वही नाम प्रतनाम के रूप में आएगा. इसी तरह कोई टीका विशेष का बृहत टीका के रूप में उल्लखित हो तो वह नाम इसी तरह से लिखा जाएगा. कई बार बालावबोध या टवार्थ हेतु कर्ता/प्रतिलेखक वार्तिक, टीका जैसी पहचान देते हैं ऐसे में कृति स्वरूप की स्पष्टता हो उस हेतु कल्पसूत्र का (मा. गु.) वार्तिक (बालावबोध) इस तरह से नाम मिलेगा. जब कि द्वितीय स्तर पर कृति स्वरूप' में तो बालावबोध/टबार्थ इसी तरह का स्वरूप मिलेगा. प्रत में यदि एकाधिक पेटाकृति/संयुक्तकृति परिवारांश हो तो यह नाम यथा योग्य विविध प्रकार का मिलेगा. (अ) प्रत में एक कृति/कृतियाँ अंत के पत्रों में गौण रूप से हो तो यह नाम निम्नरूप से मिलेंगे. कल्पसूत्र सह (मा. गु.) टबार्थ व पट्टावली गजसुकुमाल रास व स्तवन संग्रह (आ) कृति में अनेक कृतियाँ गौण मुख्य भेद के बिना संग्रहित हो तो नाम निम्न रूप से सामान्य प्रकार के बनेंगे. स्तवन संग्रह जीवविचार कर्मग्रंथ आदि प्रकरण सह टीका - इत्यादि (ग) प्रत दशा : श्रेष्ठ, मध्यम, जीर्ण (घ) पूर्णता 1. संपूर्ण : पूरी तरह से संपूर्ण प्रत. 2. पूर्ण : मात्र अत्यल्प एक देश से अपूर्ण - 100 में से 98 पत्र उपलब्ध हो. 3. प्रतिपूर्ण : प्रतिलेखक ने ही कोई खास अध्याय अंश मात्र ही लिखा हो. 4. अपूर्ण : प्रत का ठीक-ठीक हिस्सा अनुपलब्ध हो. 5. त्रुटक : बीच-बीच के अनेक पत्र अनुपलब्ध हो. 6. प्रतिअपूर्ण :प्रतिलेखक ने ही कोई खास अध्याय मात्र ही लिखा हो और उस में भी पत्र अनुपलब्ध हो.
SR No.018001
Book TitleHastlikhit Granthsuchi Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJambuvijay
PublisherStambhan Parshwanath Jain Trith Anand
Publication Year2005
Total Pages582
LanguageHindi
ClassificationCatalogue & Catalogue
File Size38 MB
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