________________ पउमवूह 18- अभिधानराजेन्द्रः - भाग 5 पउमसेहर पउमवूह पुं० (पद्मव्यूह) पद्माऽऽकारे परेषामनभिभवनीये सैन्य विन्यासविशेष, प्रश्न०३ आश्र० द्वार। पउमसर न० (पद्मसरस्) पद्मभूषितं सरः पद्मसर इति समासः। आ०म० 1 अ०। पद्मयुक्ते सरसि, पद्यानियत्रोत्पद्यन्ते। स्था० 10 ठा० / कल्प। तीर्थकृन्मातरश्चतुर्दशसु स्वप्नेषु दशमस्वप्ने पासरः पश्यन्ति, तत्कि पद्मोपलक्षित सरोवरमात्रमुत मानसरोवत्पद्मसराऽपि द्वीपान्तरे कोऽप्यस्तीति प्रश्रे, उत्तरम्-पद्ममैरुपलक्षितंसरः पद्मसर इति व्याख्यातमस्ति, द्वीपान्तरे तु तन्नामक सरो नास्तीति। 106 प्र०। सेन०१ उल्ला०। पउमसागर पुं० (पासागर) तपागच्छीये धर्मसागरोपाध्यायशिष्य नयप्रकाशग्रन्थकारके सूरौ, स च वैक्रमीये 1673 वर्षे आसीत्। जै० इ०। पउमसिरी स्त्री० (पाश्री) दन्तपुरे नगरे धनमित्रवणिजो भार्यायां धनश्रीसपत्न्याम्, यया दन्तमयसौधेदोहदोयाचितः। आ०का आव०। आ०चू० / नि० चू०1 (णिरवलाव शब्दे चतुर्थभागे 2111 पृष्ठे कथा) मेघरथविद्याधरदुहितरि सुभौमस्य चक्रवर्तिनो भार्यायाम, आ०क०। ('माण' शब्देऽस्योदाहरणम्) सिंहपुरे नगरे कीर्तिधर्मस्य राज्ञो दुहितरि, दर्श०३ तत्त्व1) पउमसुंदर पुं० (पद्मसुंदर) नागपुरीयतपागच्छीये राजमल्लाभ्युदयमहाकाव्यधातुपाठपार्श्वनाथकाव्यजम्बूस्वामिकथानकाऽऽदिग्रन्थकृति स्वनामख्याते गणिनि, जै,इ०।। पउमसेण पुं० (पद्मसेन) श्रेणिकपुत्रस्य महाकृष्णसत्कपुत्रे, स च वीरान्तिके प्रव्रज्य लान्तके कल्पे उपपद्य महाविदेहे सेत्स्यतीति कल्पावतंसिकानां षष्ठेऽध्ययने सूचितम्। नि०१ श्रु०२वर्ग 8 अ०। पर्वतविशेष कूटाधिपती नागकुमारे देवे, द्वी०। पउमसेहर पुं० (पद्मशेखर) पृथिवीपुरनरराजे, ध०२०। पद्मशेखरमहाराजकथा चैबम्"पुरिसुत्तमसयणं सुर-जणमहियं किं तु खारगुणरहियं / नीरनिहिनीरसरिसं, पुहइपुरं अस्थि इत्थ पुरं / / 1 / / सुनओ वसणविरहिओ, किंतु जडासंगवजिओ सययं। ससिसेहरुब्ब सिरिपउमसेहरो नरवरो तत्थाशा सो बालभावओ भाबिऊण भावेण गहियजिणधम्मो। राईसराइपुरओ, पत्तो पन्नवइ जिणधम्मं / / 3 / / वक्खाणइ जीवदयं, अपमायाओ परूवए मुक्ख। बहुसो बहुमाणेणं एवं वन्नइ, सया गुरुणो // 4 // खंता दंता संता, उवसंता रागरोसपरिचत्ता। परपरिवायविरत्ता, हुंति गुरू निचमपमत्ता // 5 // उवसमसीयलसलिलप्पबाहविज्झवियकोहजलणा वि। गाढप्परूढभववियडविडविनिट्लवणदवदहणा।६।। निजियमयणा वि पसिद्धसिद्धिबहुसंगसुक्खतल्लिच्छा। परिच त्तसयलसंगा, वि सुदिढ संगहियचरणधणा // 7 // नीसेसजंतुसंता- णपालणे फुरियगरुयकरुणा वि। निठुरपमायसिंधुर-कुंभत्थलदलणहरिसरिसा।।८।। तथाकसे संखे जीवे, गयणे बाऊय सारए सलिले। पुक्खलपत्ते कुम्मे, विहगे खग्गे य भारुडे // 6 // कुजरवसहे सीहे, नगराया चेव सागरक्खोहे। चंदे सूरे कणगे, वसुंधरा चेव सुहुयहुए॥१०॥ जिणसमए निद्दिट्टा, इचाइनिर्दसणेहि मुणिवसहा। भावेण तेसि गुणवन्नणं पिनासेइ दुरियभरं / / 11 / / किचमाणुसं उत्तम धम्मो, गुरुनाणाइसंजुओ। सामग्गी दुल्लहा, एसा जाणेहि हियमप्पणो / / 12 / / एयारिसो सुहगुरू, धन्नाणं दिट्टिगोयरमुवेइ। एयरस सवणसुहयं, पियति वयणामयं धन्ना // 13 // एयस्स महामुणिणो, उवएसरसायणं अकाऊण। होही पच्छायावो, चत्ते पत्ते निहाणे व्व // 14 // इय भणिएणं तेणं, जिणधम्मे ठाविओ बहू लोओ? एगो पुण सिट्ठिसुओ, विजओ नामेण इय भणइ॥१५॥ पवणुद्धयचेलचलं, चलं मण कह धरति मे मणिणो। कह नियनियविसए धा-विराइँ रुंधति करणाइं?|१६|| दुहियजियाणं च वहो, जुत्तो जं ते विणाया इहयं / वेइत्तु निययकम्म, सुगईए भायणं हुंति॥१७|| जं पुण अपमायाओ, मुक्खस्स परूवणं तयं मन्ने। जरहरणे तक्खगमउलिरयणउवएसदाणं व।।१८|| इय सो वायालत्तेण, धम्माभिमुहं पि मोहए लोए। नीओ निवेण तव्योहणत्थमेव तओ विहियं // 16 // जक्खु त्ति निययपुरिसो, भणिओ जह मह इमं अलंकारं। पक्खिवसु काउ मित्तं, रयणकरंडम्भि विजयस्स // 20 // तेण वि तहेव काउं, विन्नत्तं राइणो तओ इमिणा! पडहगपयाणपुव्वं, नयरे घोसावियं एवं / / 21 / / जो निवआहरणं कहवि लद्भपप्पह स दोसर्व गिरिह। पच्छा से तणुदंडो, इय घोसावित्तु वारतिग।।२२।। सह पउरेहि सपुरिसा, वुत्ता गिहसोहणम्मि अह तेहिं। विजयगिहे तं दिटुं, सो पुट्टो नणु किमेयं ति? // 23 / / स भणइ अहं न याणे, चोरियमवि न मुणसि त्ति भणिरेहिं। निवपासे नीओ ते-हिं तेण वज्झोस आणत्तो // 24 // न य ते को वि मुयावइ,पचक्खो तक्करु तितो विजओ। पाचत्तजीवियासो, जक्खं पइ जपइ सुदीणो / / 25 / / मित्त निवं विन्नविउ, दंडेणं दुक्करेण वि कह पि। दावेसु जीवियं मे तो जक्खो भणइ इय निवई // 26 // देव मह मुयसु मित्तं, केण विदंडेण तो भणइ राया। जइ जाइ हओ सुगई, मित्तोतुह किं न पडिहाइ ?||27|| स भणइ सुगईएँ अलं, जीवंतो पिच्छए नरो भई। ता देसु पाणभिक्खं, तो निवई भणइ कुविय व्व // 28 // जइ मम पासाओ तेल्लुपुन्नपत्तं गहित्तु बिंदु पि! अचयंतो सयलपुरे, भमिउपुण ठवइ मह पुरओ // 26 // ता तुह मुएमि मित्त, रायाए संतयं कहइ जक्खो / विजयरस तेण त पिहु, पडिवन्नं जीवियासाए॥३०।। तत्तो निरूवियाई. सयलपुरे पउमसेहरनिवेण। पहुपडहवेणवीणाइसद्दउद्दामहरिसाइं॥३१॥ अइलडहरूवलवणिमसुवेसवेसाविलासकलियाई। सव्विदियसुहयाई, पए पए पिच्छणसयाई॥३२।। सो किर विसेसरसिओ, तेसु अइमरणभीरुओ तह वि। तेल्लपडिपुत्रपत्ते, निहियमणो भमिय सयलपुरे // 33 //