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________________ उववाय 1002 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 2 उववाय अणुत्तरविमाणाणं ईसिप्पभाराए य पुढवीए अंतरा समोहए समोहइत्ता जे भविए घणवाततणु वातघणवातबलएसु वाउकाइयत्ताए उववजित्तए सेसं तं चेव जाव से तेणटेणं जाव उववजेजा। सेवं भंते ! भंते ! त्ति / / वीसइमस्स छटो उद्देसो सम्मत्तो // 20 // 6 // पञ्चमे पुद्गलपरिणाम उक्तः षष्ठे तु पृथिव्यादिजीयपरिणामोऽभिधीयत इत्येवं सम्बद्धस्यास्येदमादिसूत्रम् “पुढवीत्यादि", (एवं जहा सत्तरसमसए छष्टुद्देसेत्ति) / अनेन च यत्सूचितं तदिदं, "पुटिव वा उववजित्ता पच्छा आहारेला पुविवा आहारित्ता पच्छा उववजेजेत्यादि / अस्य चायमर्थःयोगेन्दुकसन्निभसमुद्धातगामी स पूर्व समुत्पद्यते तत्र गच्छतीत्यर्थः पश्चादाहारयति शरीरप्रयोग्यान्पुद्गलान् गृह्णन् गृह्णातीत्यर्थः अत उच्यते (पुट्वि वा उववजित्ता पच्छा आहारेज्जत्ति) यः पुनरीलिकासन्निभसमुद्धातगामी स पूर्वमाहारयति उत्पत्तिक्षेत्रे प्रदेशप्रक्षेपणेनाहारं गृह्णातीति तत्समनन्तरश्च प्राक्तनशरीरस्तु प्रदेशानुत्पत्तिक्षेत्रे संहरति अत उच्यते (पुव्वि आहारित्ता पच्छा उववज्जेजत्ति) विंशतितमशते षष्ठ उद्दडेशः। पुढवीकाइयाणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए समोहइत्ताजे भविए सोहम्मे कप्पे पुढवीकाइयत्ताए उववजित्तए से भंते ! किं पुट्विं उववज्जित्ता पच्छा संपाउणेजा पुटिव वा संपाउज्जित्ता पच्छा उववज्जेज्जा ? गोयमा ! पुटिव वा उववज्जत्ता पच्छा संपाउणेज्जा पुटिव वा संपाउणेत्ता पच्छा उववज्जेजा। से केणटेणं जाव पच्छा उववजेज्जा ? गोयमा ! पुढवीकाइयाणं तओ समुग्धाया पण्णत्तातं जहा वेयणासमुग्घाए कसायसमुग्घाए मारणांतियसमुग्घाए। मारणांतियसमुग्घाएणं समोहणमाणे देसेणं वा समोहणइ सव्वेण वा समोहणइ, देसेण समोहणमाणे पुटिव संपाउणित्ता पच्छा उववजिज्जा सव्वेण समोहणमाणे पुटिव उववज्जिज्जा पच्छा संपाउणेज्जा से तेणटेणं जाव उववज्जेज्जा। पुढवीकाइयाणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव समोहए समोहएत्ताजे भविए ईसाणे कप्पे पुढवी एवं चेव ईसाणेवि। एवं अचुयगेवेज्जविमाणे अणुत्तरविमाणे ईसिप्पभाराए य एवं चेव पुढवीकाइयाणं भंते ! सक्करप्पभाए पुढवीए समोहए समोहएत्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढवीए एवं जहा रयणप्पभाए पुढवीकाइओ उववाइओ एवं सक्करप्पभाए पुढवीकाइओ | उववाएयव्वो जाव ईसिप्पभाराए एवं जहा रयणप्पभाए वत्तव्वया भणिया, एवं जाव अहे सत्तमाए समोहए ईसिप्पभाराए उववाएयवो सेवं भंते ! भंते ! त्ति (सत्तरसमस्स छट्ठो ||१७||६||पुढवीकाइएणं मंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए | पुढवीकाइयत्ताए उववजित्तए सेणं भंते ! किं सेसं ते चेव जहा रयणप्पभाए पुढवीकाइओ सव्वकप्पेसु जावईसिप्पभाराएताव उववाइओ, एवं, सोहम्मपुढवीकाइओवि सत्तसु पुढवीसु उववाएयवो तहा जाव अहे सत्तमाए एवं जहा सोहम्मपुढवीकाइओ सव्वपुढवीसु उववाइओ एवं जाव ईसिप्पभारापुढवीकाइओ सव्वपुढवीसु उववाएयव्यो जाव अहेसत्तमाए सेवं भंते ! भंते ! त्ति (सत्तरसमस्स सत्तमो उद्देसो सम्मत्ता / / 17 // 7 // ) आउकाइएणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए समोहइत्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे आउकाइयत्ताए उववञ्जित्तए एवं जहा पुढवीकाइओ तहा आउकाइओ वि सव्वकप्पेसु जाव ईसिप्पभाराए तहेव उववाएयव्वो एवं जहा रयणप्पभा आउकाइओ उववाइओतहा अहेसत्तमापुढवी आउकाइओ उववाएयव्वो जावईसिप्पभाराए सेवं भंते ! भंते ! त्ति (सत्तरसमस्स अट्ठमो उद्देसो सम्मत्तो ||17||8|) आउकाइयणं मंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए समोहएत्ताजे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीएघणोदधिबलएसु आउकाइयत्ताए उववजित्तए सेणं भंते ! सेसं तं चेव एवं जाव अहे सत्तमाए जहा सोहम्मआउकाइओ एवं जाव ईसिप्पभाए आउकाइओ जाव अहेसत्तमाए उववातेयव्वो सेवं भंते ! भंते! त्ति / / (सत्तरसमस्स य णव मो उद्देसो सम्मत्तो / / 17 / 6) वाउकाइएणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं जहा पुढवीकाइओ तहा वाउकाइओवि णवरं वाउकाइयाणं चत्तारि समुग्धायापण्णत्तातंजहावेदणासमुग्घाए जाव वेउव्वियसमुग्धाए मारणांतियसमुग्घाएणं समोहणमाणे देसेण वा समोहए सेसं तं चेव जाव अहे सत्तमा समोहयाओ ईसिप्पभाराए उववाएयव्यो सेवं भंते ! भंते ! त्ति (सत्तरसमस्स य दसमो उद्देसो सम्मत्तो // 17 // 10 // ) वाउकाइएणं मंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए समोहएत्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीएघणवाए तणुवाए घणवायवलएसुतणुवायवलएसुवाउकाएयत्ताए उववजित्तए सेणं भंते ! से सं तं चेव एवं जहा सोहम्मकप्पवाउकाइओ सत्तसुविपुढवीसु उववाइओ एवं जाव ईसिप्पभाए वाउकाइओ अहेसत्तमाएजाव उववाएयव्वो सेवं भंते ! भंते ! ति (सत्तरसमस्स एक्कारसमो उद्देसो सम्मत्तो॥१७॥११॥) (समोहएत्ति) समवहतःकृतमारणान्तिकसमुद्धातः (उववजित्तित्ति) उत्पादक्षेत्रं गत्वा (संपाउणेज्जत्ति) पुद्गलग्रहणं कुर्यात् उतव्यत्यय इति प्रश्नः (गोयमा ! पुट्विंवाउववञ्जित्ता पच्छा संपाउ गेजत्ति) मारणान्तिकसमुद्धातान्निवृत्य यदा प्राक्तनशरीरस्य सर्वथा त्यागात् गेन्दुकात्योत्पत्तिदेशंगच्छतितदोच्यतेपूर्वमुत्पद्यपश्चात्सम्प्राप्नुयात्पुरलान् गृह्णीयात् आहारयेदित्यर्थः / (पुब्बि वा संपाउणित्ता पच्छा उववजंति) यदा मारणान्तिकसमुद्धातगत एव म्रियते ईलिकागत्योत्पादस्थानंयातितदोच्य
SR No.016144
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1224
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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