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________________ 66 7- जीतकल्पच्छेदसूत्र, मूलसंख्या 105, टीका 12000, सेनकृत चूर्णि 1000, भाष्य ३१२४,संपूर्ण संख्या 16232 है, और चूर्णि की व्याख्या 1120 है, और इसकी लघृवृत्ति श्रीसाधुरत्नकृत 5700, और तिलकाचार्यकृत वृत्ति १५००है। साधुजितकल्पविस्तार 375, धर्मघोषसूरिकृत वृत्ति 2650 है, और उसपर पृथ्वीचन्द्रकृत टिप्पण 670, और नियुक्ति-गाथा 168 भद्रबाहुस्वामीकृत है, इसकी चूर्णि और टीकाएँ बहुत है, परंतु प्रायः करे वि०सं० 1200 के पीछे की बनी हुई हैं। __ चार मूलसूत्रों की संख्या इस तरह है१- आवश्यक सूत्र, मूलगाथा 125, टीका हरिभद्रसूरिकृत 22000, नियुक्ति भद्रबाहुस्वामिकृत 3100, चूर्णि 18000 है। दूसरी आवश्यक वृत्ति [चतुर्विंशति] 22000 है, उसकी लघृवृत्ति तिलकाचार्य कृत 12321 है, और अञ्चलगच्छा-चार्यकृत दीपिका 12000 है, इसका भाष्य 4000 है, आवश्यकटिप्पण मलधारि हेमचन्द्रसूरिकृत 4600 है। संपूर्णसंख्या 68146 है, नियुक्ति की टीका हरिभद्रसूरिकृत 22500 है। 1- विशेषावश्यकसूत्र, आवश्यकसूत्र मूल (सामायिकाध्ययन) का विशेष परिकर है] मूलसंख्या 5000 है। श्रीजिन-भद्रगणिक्षमाश्रमण कृत है, और इसकी बृहद्वृत्ति 18000 मलधारिहेमचन्द्रसूरिकृत है, लधुवृत्ति 14000 कोटाचार्यकृत, या द्रोणाचार्यकृत है, बृहद्वृत्ति की टीका तर्कानुविद्या जैनस्थापनाचार्य कृत है। १-पाखी(पाक्षिक) सूत्र, मूल ३६०,सं०११८० में यशोदेवसूरिकृत टीका 2700, चूर्णि 400 है। १-यतिप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति 600 है। 2- दशवैकालिक सूत्र, सय्यंभवसूरिकृत, मूल 700, वृत्ति तिलकाचार्यकृत 7000, दूसरी वृत्ति हरिभद्रसूरिकृत 6810, और मलयगिरिकृत वृत्ति 7700, चूर्णि 7500, लघुवृत्ति 3700 है। नियुक्तिगाथा 450 है। आधुनिक सोमसुन्दरसूरिकृत लघुटीका 4200, तथा समयसुंदरउपाध्यायकृत लघुटीका 2600 है। 2- पिण्डनियुक्ति, भद्रबाहुस्वामिकृत, मूलसंख्या 700, इसपर टीका मलयगिरिकृत ७०००,दूसरी प्रति में 6600 है, वि०सं०११६० में वीरगणिकृत टीका 7500 है और महासूरिकृत लघुवृत्ति 4000 है, संपूर्णसंख्या 16200 है। 3- ओघनियुक्ति, भद्रबाहुस्वामिकृत, मूलगाथा 1170 हैं, द्रोणाचार्यकृत टीका 7000, और इसका भाष्य 3000 है, चूर्णि 7000 है, संपूर्णसंख्या 18450 है। 4- उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन 36 हैं, मूलसंख्या 2000 है, वादिवेताल शान्तिसूरिकृत बृहद्वृत्ति पाईटीका] 18000 है, दूसरी प्रति में 17645 लक्ष्मीवल्लभी टीका है, सं०११२६ में नेमिचन्द्रसूरि से कृत लघुवृत्ति 13600 है, भद्रबाहुस्वामिकृत गाथानियुक्ति 607 है, और चूर्णि 6000 है, संपूर्णसंख्या 40300 / अब दो चूलिकासूत्र की संख्या और नाम 1- नन्दीसूत्र, देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणकृत, मूलसंख्या 700 है, इसपर मलयगिरिकृत वृत्ति 7735, चूर्णि सं०७३३ में बनी हुई 2000 है, हरिभद्रसूरिकृत लघुटीका 2312 है, संपूर्णसंख्या 12757 है। चन्द्रसूरिकृत टिप्पण 3000 है। 2- अनुयोगद्वारसूत्र, गाथा 1600 हैं, उसपर मलधारिहेमचन्द्रसूरिकृत वृत्ति 6000 है। जिनदासगणिमहत्तर कृत चूर्णि 3000, और हरिभद्रसूरिकृत लघुवृत्ति 3500 है, इसतरह संपूर्णसंख्या 14300 है।
SR No.016143
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1078
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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