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________________ अंब(म्म)म 111 - अभिधानराजेन्द्रः - भाग 1 अंब(म्म)म - अंबडे परिव्वायए जाव वसहिं उवेइ गोयमा ! अम्मडस्स णं परिवायगस्स पगइभद्दयाए जाव विणीयाए छटुं छटेणं अतिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय 2 | सूराभिमुहस्स आतावणभूमीए आतावे माणस्स सुभेणं परिणामेणं पसत्थाहिं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं अन्नया कयाइ तदावरणिज्जाणं कम्माणं जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहामग्गणगवेसणकरेमाणस्स वीरियलद्धीए वेउवियलद्धीए ओहिणाणलद्धी समुप्पण्णा। तए णं से अम्मडे परिव्वायए ताए वीरियलद्धीए वेउव्वियलद्धीए ओहिणाणलद्धीप समुप्पण्णाए जणविम्हावणहे उं कपिल्लपुरे घरसते जाव वसहिं उवेइ। से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चई अंबडे परिव्वायए कंपिल्लपुरे नगरे घरसए जाव वसहिं उवेइ। पभू णं भंते ! अंबडे परिवायए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए ? णो तिणडे समढे / गोयमा ! अम्मडे णं परिव्वायए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरति, णवरं ऊसियफलिहे अवंगुदुवारे चियत्तंते पुरघरदार-पवेसीणवं ण वुचति / अम्मडस्स णं परिव्वायगस्स थूलए पाणातिवाते पचक्खाते जावजीवाए जाव परिग्गहे, णवरं सव्वे मेहुणे पचक्खाते जावजीवाए | अम्मडस्स णं णो कप्पइ अक्खसोतप्पमाणमेत्तं पि जलं सग्रहं उत्तण्हं उत्तरित्तए। णण्णत्थ अद्धाणगमणेणं अम्मडस्स णं णो कप्पइ सगडं एवं चेव भाणियव्वं / जाव णण्णत्थ एगा एग गामट्टियाए। अंबडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ आहाकम्मिए वा उद्देसिए वा सीसजाएति वा अज्झोअरएइ वा पूइकम्मेइ वा कीयगडेति वा पामिचेइ वा णिअणिसिद्धेइ वा अभिहडेइ वा द्वइत्तए वा रइत्तए वा, कंतारभत्तेइ वा दुढिमक्खभत्तेइ वा पाहुणकभत्तेइ वा गिलाणभत्तेइवा वदलियामत्तेइ वा भोत्तएवापाइत्तएवा। अंबडस्स णं परिव्वायगस्स णो कप्पइ मूलभोयणे वा जाव बीयभोयणे वा भोत्तए वा पाइत्तए वा / अंबडस्स णं परिव्वायगस्स चउविहे अणत्थदंडे पचक्खाए जावजीवाए, तंजहाअवज्झाणायरिए पमादायरिए हिंसप्पयाणे पावकम्मोवदेसे / अंबडस्स कप्पइ मागहए अ आढए जलस्स पडिग्गाहित्तए। से विय वहमाणए,नो चेवणं अवहमाणए / जाव से विपूए,नो चेवणं अपरिपूए। से वि य सावजेत्ति काऊ णो चेवणं अणवजे से विय जीवाई कट्ठ णो चेवणं अजीवा / से विय दिपणे, णो चेव णं अदिण्णे। से विय दंतहत्थपायचारुमसक्खालणट्ठताए पवित्तए वा, णो चेव णं सिणाइत्तए / अंबडस्सणं परिव्वायगस्स कप्पइमागहए य आढए जलसपडिग्गहित्तए से विय वयमाणे दिन्ने, नो चेवणं अदिण्णे। से वि य सिणाइत्तए णो चेव णं हत्थपादचारु वमसपक्खालयणट्ठयाए पिवित्तए वा अंबडस्स परिव्वायगस्सणो कप्पइ अन्नउत्थिया वा अण्णउत्थितदेवयाणि वा अण्णउत्थितपरिग्गहियाणि वा चेइयाई वंदित्तए वा णमंसित्तए वा, जाव पज्जुवासित्तए वा, अरिहंतेवा, अरिहंतचेइयाणि वा। (णणत्थ अरहंतेवत्ति ) न कल्पते इह योऽयं नेति प्रतिषेधः सोऽन्यत्रार्हद्भ्यः अर्हतो वर्जयित्वेत्यर्थः / स हि किल परिव्राजक वेषधारकोऽतोऽन्ययूथिकदेवतावन्दनादिनिषेधे अर्हतामपि वन्दनादिनिषेधो मा भूदिति कृत्वा णण्णत्थेत्याद्यधीतं, औ० / भ०। अम्बडस्य मृत्वोपपातःकालमासे कालं किया कहिं गच्छहिंति कहिं उवव-शिहिंति ? गोयमा! अंबडे णं परिव्वायए उच्चावएहिं सीलव्वयगुणवेरमणपचक्खाणपोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेमाणे बहू. वासाई समाणोवासयपरियायं पाउणित्तए पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सहिँ भत्ताई अणसणाई छे दित्ता आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किया बंभलोए कप्पे देवत्ताए उववज्जेहिंति / तत्थ णं अप्पेगइयाणं देवाणं दससागरो-वमाइंठिती पण्णत्ता,तत्थणं अम्मडस्स वि देवस्स दस-सागरोवमाइं ठिती। से णं मंते ! अंबडे देवत्ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ट्ठिइक्खएणं अणंतरं चइ चइत्ता कहिं गच्छेहित्ति कहिं उववज्जइत्ति ? गोयमा! महाविदेहे वासे जाइं कु लाई भवंति अढाई दित्ताई वित्ताई विच्छिण्ण विउल-भवणसयणासण जाण वाहणाई बहुधणजायरूवरयत्ताई आओगपओगसंपउत्ताई विच्छडियपउरभत्तपाणाई बहुदासी-दासगोमहिसवेलगप्पभूयाई बहुजणस्स अपरिभूयाई तहप्पगारे सु कुलेसु पुमत्ता पव्वायाहिंति। तएणं तस्सदारगस्स गब्भत्थस्स चेव समाणस्स अम्मपितीणं धम्मे दढपतिण्णो भविस्सइ / से णं तत्थ णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अद्धट्ठमाणराइंदियाणं वीतिकंताणं सुकुमालपाणिपाए जाव ससिसोमाकारे कंतं पियदंसणे सुरूवे दारए पयाहिंति / तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे द्वितीपडियं काहिंति, तइयदिवसे चंदसूरदंसणियं काहिंति, छठे दिवसे जागरियं काहिंति, एक्कारसमे दिवसे वीतिबंतिणिव्वत्ते असुइ जावइ कम्मं करणे, संपत्ते बारसमे दिवसे अम्मापियरो इमं एयारूवं गुणं गुणणि-प्पन्नं णामधेज काहिंति जम्हा णं अम्हं इमंसि दारगंसि गब्भत्थंसि चेव समाणं सि धम्मे दढपतिण्णा, तं होऊ णं अम्हं दारए दढपइण्णणामेणं। तते णं तस्सदारगस्स अम्मापिपरोणामधेनं करेहिंति "दढपइण्णेत्ति" तं दढपइण्णं दारगं अम्मापियरो सातिरेगट्ठवासजातगं जाणित्ता सोभणंसि तिहिकरणदिवस
SR No.016143
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1078
LanguageHindi
ClassificationDictionary
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