SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 21 में हुआ, इस चौमासे में 'अभिधानराजेन्द्र कोष' बनाने का आरम्भ किया गया। सं० 1947 मे गुड़ा, 1948 आहोर, और 1646 का चौमासा 'निबाहेडा' में हुआ। इसमें ढूँढकपन्थियों के पूज्य नन्दरामजी के साथ चर्चा हुई, जिसमें इढियों को परास्त करके साठ 60 घर मन्दिरमार्गी बनाये। सं० 1950 खाचरोद, 1651 और 1652 का चौमासा 'अभिधानराजेन्द्रकोष' के काम चलने से राजगढ़ ही में हुए। सं० 1953 में चौमासा शहर 'जावरे' में हुआ, यहाँ कातिक महीने में बड़े समारोह के साथ संघ की तरफ से अट्ठाई महोत्सव किया गया, जिसमें बीस हजार रुपये खर्च हुए और विपक्षी लोगों को अच्छी रीति से शिक्षा दी गयी, जिससे जैन धर्म की बहुत भारी उन्नति हुई। सं० 1954 का चौमासा शहर रतलाम में हुआ, यहाँ भी अट्ठाई महोत्सव बड़े धूमधाम से हुआ, जिस पर करीब दश हजार श्रावक और श्राविकाएँ आपके दर्शन करने को आई, और संघ की ओर से उनकी भक्ति पूर्ण रूप से हुई, जिसमें सब खर्च करीब बीस हजार के हुआ, विशेष प्रशंसनीय बात यह हुई कि पाखण्डी लोगों को पूर्ण रूप से शिक्षा दी गयी, जिससे आपको बड़ा यश प्राप्त हुआ। सम्वत् 1655 का चौमासा मारवाड़ देश के शहर 'आहोर' में हुआ, इस चौमासे में भी धार्मिक उन्नति विशेष प्रकार से हुई और इसी वर्ष में श्रीआहोरसंघ की तरफ से 'श्रीगोडीपार्श्वनाथजी' के बावन 52 जिनालय (जिनमंदिर) की प्रतिष्ठा और अञ्जनशलाका आप ही के करकमलों से करायी गयी, जिसके उत्सव पर करीब पचास हजार श्रावक श्राविकाएँ आए और मन्दिर में एक लाख रुपयों की आमद हुई। इस अञ्जनशलाका में नौ सौ 600 जिनेन्द्रबिम्बों की अञ्जनशलाका की गई थी, इतना बड़ा भारी उत्सव मारवाड़ में पहली बार ही हुआ था। इतने मनुष्यों के एकत्रित होने पर भी किसी प्रकार की अनहोनी नहीं हुई यह सब आपका ही प्रभाव था। सं० 1956 का चौमासा शहर शिवगञ्ज में हुआ। जिस में अपने गच्छ की मर्यादा बिगड़ने न पावे इस लिये इस चौमासे में आपने साधु और श्रावक संबन्धी पैंतीस सामाचारी (कलमें) जाहर की, जिसके मुताबिक आजकल आपका साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविकारूप चतुर्विध संघ बर्ताव कर रहा है। सम्वत् 1657 का चौमासा शहर सियाणा में हुआ। यहाँ श्रीसंघ की तरफ से महाराज कुमारपाल का बनवाया हुआ 'श्रीसुविधिनाथ जी' के जिनमन्दिर का उद्धार आप ही के उपदेश से कराया गया था और आस पास चौवीस देवकुलिका बनायी गई थी और उनकी प्रतिष्ठा आपके ही हाथ से करायी गई, इस उत्सव पर मन्दिर में सत्तर 70 हजार रुपयों की आमद हुई और दिव्य एक पाठशाला भी स्थापित हुई। सं० 1658 का चौमासा आहौर, और 1656 का शहर 'जालोर' में हुवा / इस चौमासे में जैनधर्म की बहुत बड़ी उन्नति हुई और मोदियों का कुसंप हटाकर सुसंप किया गया। फिर चौमासे पूर्ण होने पर शहर आहोर में दिव्य ज्ञान-भण्डार की और एक घूमटदार जिनमन्दिर की प्रतिष्ठा की। इस ज्ञानभण्डार में बहुत प्राचीन 2 ग्रन्थ हैं / पैंतालीस आगम और उनकी पञ्चाङ्गी तिबरती(तेहरी) मौजूद है और प्राचीन महर्षियों के बनाये ग्रन्थ भी अगणित मौजूद हैं, और छपी हुई पुस्तकें भी अपरिमित संग्रह की गयी हैं, इसकी सुरक्षा के लिये एक अत्यन्त सुन्दर माबल (पाषाण) की आलमारी बनायी गयी है, जिसके चारो तरफ श्रीगौतमस्वामी जी, श्रीसरस्वती जी, श्रीचक्रेश्वरी जी, और श्रीद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वर जी की मूर्तियां विराजमान हैं / यह भण्डार आप ही की कृपा से संग्रहीत हुआ है। फिर सूरीजी महाराज आहोर से विहार कर 'गुडे गाँव में पधारे। यहाँ माघसुदी 5 के दिन 'अचला जी' के बनवाये हुए मन्दिर की प्रतिष्ठा की! तदनन्तर शिवगञ्ज होकर 'बाली' शहर में पधारे। यहाँ तीन श्रावकों को दीक्षा देकर 'श्रीकेसरिया जी' और 'श्रीसिद्धाचल जी,' तथा 'भोयणी जी' आदि सुतीर्थों की यात्रा करते हुए शहर 'सूरत' में पधारे। यहाँ पर सब श्रावकों ने सर्वोत्तम समारोह से नगरप्रवेश कराया और संवत् 1960 का चौमासा इसी शहर में हुआ। इस चौमासे में बहुत से धर्मद्रोही लोगों ने आपको उपसर्ग किया, परन्तु सद्धर्म के प्रभाव से उन धर्मद्रोही धर्मनिन्दकों का कुछ भी जोर नहीं चला किन्तु सूरीजी महाराज को ही विजय प्राप्त हुआ। इस चौमासे का विशेष दिग्दर्शन 'राजेन्द्रसूर्योदय' और 'कदाग्रह
SR No.016143
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1078
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy