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________________ (136) . [सिद्धहेम.] अभिधानराजेन्द्रपरिशिष्टम्। [अ०८पा०४] अंसु-जलें प्राइम्व गोरिअ हे सहि उव्वत्ता नयण-सर। एवं-परं-सम-ध्रुवं-मा-मनाक्- एम्ब पर समाणु ध्रुवु मं तें संमुह संपेसिआ देन्ति तिरिच्छी घत्त पर ||3|| मणाउं // 418|| अश्रुजलेन प्रायः गौर्याः सखि उद्धृते नयनसरसी। एवं 'एम्व' तथा मा 'मं,' ध्रुवं धुवु, परं पर / ते संमुखे संप्रेषिते दत्तः तिर्यग् घातं परम् // 3 // मनाक 'मणाउं' वक्तव्यं, समम अत्र 'सभाण' च। (हे सखि, मुझे लगता है कि मुग्धा के नयनरूपी सरोवर अश्रुजल पिय-संगमि कउ निद्दडी पिअहो परोक्खहो केम्व / से हमेशा परिपूरित रहते हैं। इसीलिए वे नेत्र जब किसी की तरह सामने म. बिनि वि विनासिआ निद्द न एम्ब न तेम्ब ||1|| देखने लगते हैं तब वे एकदम तिरछी सर्वोच्च चोट करते हैं। 414.3) प्रियसंगमे कथं निद्रा प्रियस्य परोक्षे कथम्। एसी पिउ रूसेसु हउँ रुट्ठी मइँ अणुणेइ / मया द्वे अपि विनाशिते निद्रा नैवं न तथा // 1 // पग्गिम्ब एइ मणोरहई दुक्करु दइउ करेइ ||4|| ('प्रिय-मिलन के समय निद्रा कहाँ आती है ? प्रिय का सहवास एष्यति प्रियः रोषिष्यामि अहं रुष्टां मामनुनयति। न होने पर भी निद्रा कहाँ आती है? मेरी दोनों ही तरह से निद्रा नष्ट प्रायः एतान् मनोरथान् दुष्करः दयितः कारयति / / 4 / / हो चुकी है ? मुझे ऐ भी नींद नहीं आती, वैसे भी नींद नहीं आती।' ('प्रियतम आयेगा, मैं रूठी रहूँगी, रूठी ऐसी मुझे वह मनाएगा। क्या 415.1) कहूँ, दुष्ट मेरा प्रियतम हमेशा ऐसे मनोरथकरवाता है।' 414.4) कन्तु जु सीहहो उवमिअइ तं महु खण्डित माणु / वाऽन्यथोऽनुः / / 415|| सीहु निरक्खय गय हणइ पिउ पय-रक्ख-समाणु ||2|| 'अनुः स्याद् वाऽन्यथेत्ययस्य, पक्षे स्याद् रूपम् 'अन्नह। कान्तः यत् सिंहेन उपमीयते तन्मम खण्डितः मानः। सिंहः नीरक्षकान् गजान् हन्ति प्रियः पदरक्षैः समम्॥२॥ विरहाणल-जाल-करालिअउ पहिउ को वि बुडिवि ठिअउ। ('मेरे प्रियतम की सिंह के साथ तुलना करना मेरा मान खण्डित अनु सिसिरकालि सीअल-जलहु धूमु कहन्तिहु करना है। सिंह तो रक्षकरहित हाथियों पर आघात करता है। जबकि उट्ठिअउ // 1 // मेरे पति रक्षा कवचवालों के साथ शत्रु को मारता है।' 418.2) विरहानलज्वालाकरालितः पथिकः कोऽपि मक्त्या स्थितः। चञ्चलु जीविउ धुवु मरणु पिअ रूसिज्जइ काई / अन्यथा शिशिरकाले शीतलजलात् धूमः कुतः उत्थितः।।१।। होसहि दिअहा रूसणा दिव्वई वरिस-सयाई // 3 // ('हे मित्र विरह रूपी अग्नि की ज्वाला के समूह से जला हुआ कोई चञ्चलं जीवितं ध्रुवं मरणं प्रिय रुष्यते कथम् / पथिक इस जल में डूब गया है, अन्यथा भले इस शीतल-काल में भविष्यन्ति दिवसा रोषयुक्ताः (रुसणा) दिव्यानि वर्षशतानि।३।। शिशिर ऋतु में इस ठंडे पानी में से भाप कहाँ से, कैसे उठ सकती ('हे मेरे जीवन साथी, जीवन चंचल है, मृत्यु निश्चित है, हे प्रियतम्, है।' 415.1) दीर्घकाल तक क्यों रूठे रहते हो। क्रोध के दिन सैंकड़ों वर्षों जैसे होते कुतसः कउ कहन्तिहु // 416|| हैं।' 418.3) 'कहन्तिहु कउ' स्यातामादेशौ कुतसः पदे / माणि पणट्ठई जइ न तणु तो देसडा चइज्ज / महु कन्तहो गुट्ठ-ट्ठिअहो कउ झुम्पडा वलन्ति / / मा दुज्जण-कर-पल्लवे हि दंसिज्जन्तु भमिज्ज ||4|| अह रिउ-रुहिरें उल्हवइ अह अप्पणे न भन्ति ll माने प्रनष्टे यदि न तनुः सत् देशं त्यजेः। मम कान्तस्य गोष्ठस्थितस्य कुतः कुटीराणि ज्वलन्ति। मा दुर्जनकरपल्लवैः दर्यमानः भ्रमेः // 4 // अथ रिपुरुधिरेण आर्द्रयति (विध्यापयति) अथ आत्मना, न (मान नष्ट होने पर, यदि शरीर नष्ट नहीं कर सकते, तो उस देश भ्रान्तिः // 1 // का त्याग अवश्य करो। दुर्जनों द्वारा अंगुलिनिर्देश से अच्छा होगा वहाँ (प्रियतमा को ठोस विश्वास है कि उसका प्रिय वीर है। वह उद्घोषणा भ्रमण न करो। 418.4) करती है-'यदि मेरा प्रियतम घर में स्थित हैं, तो झोपड़े कैसे जल लोणु विलिज्जइ पाणिएण अरि खल मेह म गज्जु / सकते हैं ? मेरा प्रियतम शत्रु के खून से या अपने खून से बुझायेगा, बालउ गइल सु झुम्पडा गोरी तिम्मइ अज्जु ||5|| इसमें कोई शंका नहीं है-दो मत नहीं है। कोई भ्रान्ति नहीं। 416.1) लवणं विलीयते पानीयेन अरे खल मेघ मा गर्जी ततस्तदोस्तोः / / 417|| ज्वालितं गलति तत्कुटीरकं गौरी तिम्यति अद्य / / 5 / / 'ततस् तदा' इत्यनयोस्, 'तो' इत्यादेश इष्यते। (नमक पानी में घुलता है, अरे दुष्ट मेघ, इतना न गरज / इसलिए "जइ भग्गा, पारकडा, तो सहि ! मज्झु पियेण / कि उस जलाई गई झोंपड़ी में पानी टपक रहा है और आज सन्नारी अह भग्गा अम्हहं तणा, तो तें मारिअडेण"||१|| भीगने वाली है / 418.5) यदि भग्नाः परकीयास्ततः सखि ! मम प्रियेण / विहवि पणट्ठइ वकुडउ रिद्धिहि जण-सामन्नु / अथ भग्ना आस्माकीनास्ततस्तेन मारितेन // 1 // किं पि मणाउ महु पिॲहो ससि अणुहरइ न अन्नु // 6 // (देखो गाथा नं०३७६/२) विभवे प्रनष्ट वक्रः ऋद्धौ जनसामान्यः।
SR No.016143
Book TitleAbhidhan Rajendra Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayrajendrasuri
PublisherRajendrasuri Shatabdi Shodh Samsthan
Publication Year2014
Total Pages1078
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size
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