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________________ ऊरुभङ्ग ] ८३ ) [ ऋक्तन्त्र में उद्योतकर की महत्ता प्रतिपादित की गयी है - न्यायसंगतिमिव उद्योतकर- स्वरूपाम् । स्वयं उद्योतकर ने अपने ग्रन्थ का उद्देश्य निम्नांकित श्लोक में प्रकट किया हैयदक्षपादः प्रवरो मुनीनां शमाय शास्त्रं जगतो जगाद । कुतार्किक ज्ञान निवृत्तिहेतोः करिष्यते तस्य मया प्रबन्धः ॥ इस ग्रन्थ में मुख्यतः दिङ्नाग एवं नागार्जुन के तर्कों का खण्डन है और दिङ्नाग को सर्वत्र 'भदन्त' शब्द से सम्बोधित किया गया है, जो बौद्ध भिक्षुकों के लिए आदरास्पद शब्द माना जाता है । ये भारद्वाजगोत्रीय ब्राह्मण तथा पाशुपत साम्प्रदाय के अनुयायी थे - इति श्रीपरमर्षि भारद्वाजपाशुपताचार्यश्रीमदुद्योतकरकृती न्यायवार्त्तिके पञ्चमोऽध्यायः ॥ आधारग्रन्थ - १. इण्डियन फिलॉसफी - भाग २ डॉ० राधाकृष्णन् २. भारतीयदर्शनआ० बलदेव उपाध्याय ३. भारतीयदर्शन - डॉ० उमेश मिश्र ४. हिन्दी तर्कभाषा - आ० विश्वेश्वर ५. हिन्दी न्यायकुसुमाञ्जलि - आ० विश्वेश्वर । ऊरुभङ्ग - यह महाकवि भास विरचित नाटक है । 'महाभारत' को कथा के आधार पर इसमें भीम द्वारा दुर्योधन के उरुभङ्ग की कथा वर्णित है । नाटक की विशिष्टता इसके दुःखान्त होने के कारण है । इसमें एक ही अंक है और समय तथा स्थान की अन्विति का पूर्णरूप से पालन किया गया है । कुरुराज दुर्योधन एवं भीमसेन के गदायुद्ध के वर्णन में वीर एवं करुणरस की पूर्ण व्याप्ति हुई है । भीम एवं दुर्योधन की दर्पोक्तियों में वीररस दिखाई पड़ता है तो गांधारी, धृतराष्ट्र आदि के विलाप में करुण रस की व्याप्ति है । कवि ने दुर्योधन के चरित्र को अधिक प्रखर एवं उज्ज्वल बनाया है । उसके चरित्र में वीरता के अतिरिक्त विनयशीलता भी दिखलाई पड़ती है, जो भास की नवीन कल्पना है । दुर्योधन एवं भीम के गदायुद्ध पर इस नाटक की कथावस्तु केन्द्रित है, अतः इसका नामकरण सार्थक है। इसका नायक दुर्योधन है। नाटककार ने रंगमंच पर ही नायक की मृत्यु दिखलाई है जो शास्त्रीय दृष्टि से अनौचित्यपूर्ण है । कवि ने दुर्योधन के चरित्र को अधिक प्रखर एवं उज्ज्वल बनाया है । आधारग्रन्थ - १. भासनाटकचक्रम् ( हिन्दी अनुवाद सहित ) - चौखम्बा प्रकाशन २. महाकवि भास - आ० बलदेव उपाध्याय | ऋक्तन्त्र - यह 'सामवेद'' को कौथुमशाखा का प्रातिशाख्य है । ग्रन्थ की पुष्पिका में इसे 'ऋक्तन्त्रव्याकरण' कहा गया है । सम्पूर्ण ग्रन्थ पाँच प्रपाठकों में 'विभाजित है, जिसमें सूत्रों की संख्या २८० है । इसके प्रणेता शाकटायन हैं और यास्क तथा पाणिनि के ग्रन्थों में भी शाकटायन को ही इसका रचयिता माना गया है । प्राचीन आचार्यों ने ‘ऋक्तन्त्र' के रचयिता के सम्बन्ध में मतवैभिन्न्य प्रकट किये हैं। भट्ट ने 'शब्दकौस्तुभ' में 'ऋक्तन्त्र' का रचयिता औदवजि को माना है तथा उनका एक सूत्र भी उद्धृत किया है। पर आधुनिक विद्वान औदवजि को व्यक्तिगत नाम एवं शाकटायन को गोत्रज नाम मान कर दोनों में समन्वय स्थापित करते हैं । [ दे० वैदिक
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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