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________________ उभयकुशल] ( ८२ ) [उद्योतकर प्रवेश, स्वस्त्ययन और प्रसाद प्राप्ति के मन्त्र हैं। इस पर गुणविष्णु एवं सायण ने भाष्य लिखे हैं। इसकी भाषा बोधगम्य, आकर्षण एवं प्रसादगुणयुक्त है। ___ क-प्रो. दुर्गामोहन भट्टाचार्य द्वारा गुणविष्णु तथा सायण-भाष्य के साथ कलकत्ता से प्रकाशित ख-१८९० ई० में सत्यव्रतसामश्रमी द्वारा 'मन्त्रब्राह्मण' के नाम से टीका के साथ कलकत्ता से प्रकाशित आधारग्रन्थ-वैदिक साहित्य और संस्कृति-आ० बलदेव उपाध्याय । उभयकुशल-ज्योतिषशास्त्र के आचार्य । ये फलित ज्योतिष के मर्मज्ञ थे। इनका स्थितिकाल वि० सं० १७३७ के आसपास है । 'विवाह-पटल' एवं 'चमत्कार-चिन्तामणि' इनके दो प्रसिद्ध ग्रन्थ हैं और दोनों का ही सम्बन्ध फलित ज्योतिष से है । ये मुहूर्त तथा जातक दोनों अंगों के पण्डित थे। सहायक ग्रन्थ-भारतीय ज्योतिष-डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री। उमापति शर्मा द्विवेद 'कविपति'-(जन्म-संवत् १९५२ ) शर्मा जी का जन्म उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के पकड़ी नामक ग्राम में हुआ था। आपने कई ग्रन्थों की रचना की है जिनमें 'शिवस्तुति' एवं 'वीरविंशतिका' प्रसिद्ध हैं। द्वितीय ग्रन्थ में हनुमान जी की स्तुति है। 'पारिजातहरण' कवि का सर्वाधिक प्रौढ़ महाकाव्य है, जिसका प्रकाशन १९५८ ई० में हुआ है। इसमें २२ सर्ग हैं और 'हरिवंशपुराण' की प्रसिद्ध 'पारिजातहरण' की कथा को आधार बनाया गया है। प्राकृतिक दृश्यों के चित्रण में कवि की दृष्टि परम्परागत है तथा शैली के विचार से वे पुराणपन्थी हैं। इस महाकाव्य का मुख्य रस शृङ्गार है और उसकी अभिव्यक्ति के लिए कोमल एवं मसृण शब्दों का चयन किया गया है । - उमास्वाति-ये जैनदर्शन के आचार्य हैं। इन्होंने विक्रम संवत् के प्रारम्भ में 'तत्त्वार्थसूत्र' या 'तत्त्वार्थाधिगमसूत्र' नामक ग्रन्थ का प्रणयन किया था। इनका जन्म मगध में हुआ था। इन्होंने स्वयं इसका भाष्य लिखा है। 'तत्त्वार्थसूत्र' जैनदर्शन के मन्तव्यों को प्रस्तुत करने वाला महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ के ऊपर अनेक जैनाचार्यों ने वृत्तियाँ एवं भाष्यों की रचना की है जिनमें पूज्यपाद देवनन्दी, समन्तभद्र, सिद्धसेन दिवाकर, भट्टअकलंक तथा विद्यानन्दी प्रसिद्ध हैं। उमास्वाति का महत्त्व दोनों ही जैन सम्प्रदायों-श्वेताम्बर एवं दिगम्बर–में समान है। दिगम्बर जैनी इन्हें उमास्वामी कहते हैं। ... आधारग्रन्थ-१. भारतीयदर्शन भाग-१ डॉ. राधाकृष्णन् (हिन्दी अनुवाद ) २. भारतीयदर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय । उद्योतकर-'वात्स्यायन भाष्य' के ऊपर उद्योतकर ने 'न्यायवात्तिक' नामक टीका ग्रन्थ की रचना की है। [ दे० वात्स्यायन ] इस ग्रन्थ की रचना दिङ्नाग प्रभृति बौद्ध नैयायिकों के तौ का खण्डन करने के निमित्त हुई थी। [दे० दिङ्नाग] । इनका समय विक्रम की षष्ठ शताब्दी माना जाता है । इन्होंने अपने ग्रन्थ में बौद्धमत का पाण्डित्यपूर्ण निरास कर ब्राह्मणन्याय की निर्दुष्टता प्रमाणित की है । सुबंधु कृत 'वासवदत्ता'
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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