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________________ इन्दुलेखा ] की प्रधानता होने के कारण की महिमा में कवि ने अनेक अत्यन्त मोहक चित्र उपस्थित प्रासादिकता दिखाई पड़ती है । ( पश्चिम खानदेश ) से हुआ है। सूरत का वर्णन देखिएनीताच्छायं क्वचिदविरलैर्नागवल्लीदलौघैः शुभ्रच्छायं क्वचन कुसुमैविस्तृतैर्विक्रियाय । पिंगं चंगैरतिपरिणतैः कुत्र चिच्चेक्षुदण्डैर्नानावर्णं पुरमिदमिति द्योतते सर्वदाऽपि ॥ ९६ आधारग्रन्थ-संस्कृत के सन्देशकाव्य - डॉ० रामकुमार आचार्य इन्दुलेखा - ये संस्कृत की कवयित्री हैं। इनके सम्बन्ध में कुछ भी ज्ञात नहीं है, केवल एक श्लोक वल्लभदेव की 'सुभाषितावलि' में प्राप्त होता है— एके वारिनिधी प्रवेशमपरे लोकान्तरालोकनं केचित् पावकयोगितां निजगदुः क्षीणेऽह्निचण्डाचिषः । मिथ्याचैतदसाक्षिकं प्रियसखि प्रत्यक्षतीव्रातपं मन्येऽहं पुनरध्वनीनरमणीचेतोऽधिशेते रविः ॥ सूर्यास्त के सम्बन्ध में यहां सुन्दर कल्पना है किसी का कहना है कि सूर्य सन्ध्याकाल में समुद्र में प्रवेश कर जाते हैं, पर किसी के अनुसार वे लोकान्तर में चले जाते हैं, पर मुझे ये सारी बातें मिथ्या प्रतीत होती हैं । इन घटनाओं का कोई प्रमाण नहीं है । प्रवासी व्यक्तियों की नारियों का चित्त विरहजन्य बाधा के कारण अधिक सन्तप्त रहता है। ज्ञात होता है कि सूर्य इसी कोमल चित्त में रात्रि के समय शयन करने के लिए प्रवेश करता है जिससे उसमें अत्यधिक गर्मी उत्पन्न हो जाती है । ईश्वर कृष्ण - सांख्यदर्शन के प्रसिद्ध आचार्य ईश्वरकृष्ण हैं, जिन्होंने 'सांख्यकारिका' नामक ग्रन्थ की रचना की है । [ दे० सांख्यदर्शन ] शंकराचार्य ने अपने 'शारीरक भाष्य' में 'सांख्यकारिका' के उद्धरण प्रस्तुत किये हैं, अतः ईश्वरकृष्ण का शंकर से पूर्ववर्ती होना निश्चित है । विद्वानों ने इनका आविर्भाव काल चतुर्थ शतक माना है, किन्तु ईश्वरकृष्ण इससे भी अधिक प्राचीन हैं । जैनग्रन्थ 'अनुयोगद्वारसूत्र' में 'कणगसत्तरी' नाम आया है जिसे विद्वानों ने 'सांख्यकारिका' के चीनी नाम 'सुवर्णसप्तति' से अभिन्न मान कर ईश्वरकृष्ण का समय प्रथम शताब्दी के आसपास निश्चित किया है । 'अनुयोगद्वारसूत्र' का समय १०० ई० है, अतः ईश्वरकृष्ण का इससे पूर्ववर्ती होना निश्चित है । ( ६१ ) [ ईश्वरकृष्ण सर्वथा नवीन विषय का प्रतिपादन किया गया है । गुरु पद्य लिखे हैं तथा स्थान-स्थान पर नदियों एवं नगरों का किया है । इसकी भाषा में प्रवाह है और सर्वत्र इसका प्रकाशन श्रीजैन साहित्यवर्धक सभा, शिवपुर 'सांख्यकारिका' के ऊपर अनेक टीकाएँ एवं व्याख्या-ग्रन्थों की रचना हुई है । आचार्य माठर रचित 'माठरवृत्ति' ( समय प्रथम शतक तथा कनिष्क का समकालीन ) 'सांख्यकारिका' की सर्वाधिक प्राचीन टीका है। आचार्य गौडपाद ने इस पर 'गौडपाद - भाष्य' की रचना की है जिनका समय सप्तम शताब्दी है । शंकर ने इस पर 'जयमंगला' नाम्नी टीका की रचना की थी, पर ये शंकर अद्वैतवादी शंकर से अभिन्न थे या अन्य, इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतैक्य नहीं है । म० म० डॉ० गोपीनाथ कविराज ने
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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