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________________ आसुरि] [ इन्दुदूत आसुरि-सांख्यदर्शन के प्रवत्तंक महर्षि कपिल के साक्षात् शिष्य 'आसुरि' थे । 'आसुरि' को जिन विद्वानों ने ऐतिहासिक व्यक्ति माना है, वे हैं म० म० डॉ० गोपीनाथ कविराज एवं डॉ० गावे, ['सांख्य फिलॉसफी' नामक ग्रन्थ के प्रणेता] पर डॉ. ए. बी० कीथ के अनुसार ये ऐतिहासिक पुरुष नहीं हैं। [ द्रष्टव्य-'सांख्यसिस्टम' पृ० ४७-४८ ] हरिभद्रसूरि [ समय ७२५ ई. के आसपास ] नामक जैन विद्वान् ने अपने ग्रन्थ 'षड्दर्शन-समुच्चय' में 'आसुरि' के नाम से एक श्लोक उद्धृत किया है, जिससे इनकी ऐतिहासिकता सन्देहास्पद नहीं होती है। वह श्लोक इस प्रकार है 'विविक्ते दृक्परिणती बुद्धी भोगोऽस्य कथ्यते । प्रतिबिम्बोदयः स्वच्छो यथा चन्द्रमसोऽम्भसि ॥" 'महाभारत' में आसुरि को पन्चशिख का गुरु बतलाया गया है। आसुरेः प्रथमं शिष्यं यमाहुश्चिरजीविनम् । पञ्चस्रोतसि निष्णातः पञ्चरात्रविशारदः ॥ पंचज्ञः पंचकृत पंचगुणः पंचशिखः स्मृतः । शान्तिपर्व अध्याय २१८ _ 'भागवत' में भी कपिल द्वारा विलुप्त 'साख्यदर्शन' को अपने शिष्य 'आसुरि' को उक्त दर्शन का ज्ञान देने का वर्णन है । पन्चमे कपिलो नाम सिद्धेशः कालविप्लुतम् । प्रोवाचासुरये सांख्यं तत्त्वग्रामविनिर्णयम् ।। १।३।११ उपर्युक्त विवरणों के आधार पर आसुरि को काल्पनिक व्यक्ति मानना उपयुक्त नहीं है। इनकी कोई भी रचना प्राप्त नहीं होती। आधारग्रन्थ-१. भारतीयदर्शन-आ० बलदेव उपाध्याय २. सांख्यतत्त्वकौमुदीप्रभा-(हिन्दी अनुवाद ) डॉ आद्याप्रसाद मिश्र । इन्दुदत-यह संस्कृत का सन्देशकाव्य है जिसके प्रणेता विनय-विजय-गणि हैं। कवि का समय अष्टादश शतक का पूर्वाधं है। ये वैश्य कुलोत्पन्न श्रेष्ठितेजःपाल के पुत्र थे। इनके दीक्षागुरु का नाम विजयप्रभसूरि था। इनका एक अधूरा काव्य 'श्रीपालरास' भी प्राप्त होता है जिसे इनके मित्र यशोविजय जी ने पूर्ण किया। कवि ने संस्कृत, प्राकृत एवं गुजराती में लगभग ३५ ग्रन्थों की रचना की है। संस्कृत ग्रन्थों के नाम इस प्रकार हैं-श्रीकल्पसूत्र सुबोधिका, लोक-प्रकाश, हैमलधुप्रक्रिया, शान्तसुधारस, जिनसहस्रनाम स्तोत्र, हैमप्रकाश, नयकणिका, षट्त्रिंशत् जल्पसंग्रह, अर्हन्नमस्कारस्तोत्र, श्री आदि जिन स्तवन । 'इन्दुदूत' में कवि ने अपने गुरु विजयप्रभ सूरीश्वर महाराज के पास चन्द्रमा से सन्देश भेजा है। सूरीश्वर जी सूर्यपुर ( सूरत ) में चातुर्मास बिता रहे हैं और कवि जोधपुर में है। प्रारम्भ में चन्द्रमा का स्वागत एवं उसके वंश की महिमा का वर्णन है। इस क्रम में कवि ने जोधपुर से सूरत तक के मार्ग का उल्लेख किया है। इस काव्य में १३१ श्लोक हैं और सम्पूर्ण रचना मन्दाक्रान्ता वृत्त में की गयी है। यद्यपि इसकी रचना 'मेघदूत' के अनुकरण पर हुई है तथापि इसमें नैतिक एवं धार्मिक तत्त्वों
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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