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________________ हर्ष या हर्षवर्धन ] ( ६८२ ) [ हर्ष या हर्षवर्धन साहित्य-सर्जन कर भारती की सेवा की। उनके जीवन की जानकारी बाणभट्ट रचित 'हर्षचरित' एवं चीनीयात्री ह्वेनत्सांग के यात्रा विवरण से प्राप्त होती है । इस सामग्री के अनुसार उनके पिता का नाम प्रभाकरवर्धन एवं माता का नाम यशोमती था । इनकी बहिन का नाम राज्यश्री था जिसका विवाह मौखरि नरेश ग्रहवर्मा के साथ हुआ था । उनके बड़े भाई महाराज राज्यवर्धन थे, पर वे अधिक दिनों तक शासन न कर सके, फलत: महाराज हर्षवर्धन को शासनसूत्र संभालना पड़ा। हर्ष की राजधानी थानेश्वर या स्थाण्वीश्वर में थी। वे धीर, वीर एवं चतुर शासक के अतिरिक्त ललित कलाओं के भी उपासक थे । अनेक ग्रन्थों तथा सुभाषितावलियों में इनके सम्बन्ध में विविध प्रकार के विचार व्यक्त किये गए हैं - १. सचित्र वर्णविच्छित्तिहारिणोरवनीपति | श्रीहर्ष इव संघट्टं चक्रे बाणमयूरयोः ॥ नवसाहसांकचरित २०१८ | २. श्रीहर्ष इत्यवनिर्वातिषु पार्थिवेषु नास्तेव केवलमजायत वस्तुतस्तु । गीर्हषं एव निजसंसदि येन राज्ञा संपूजितः कनककोटिशतेन बाणः ।। सोढल । ३. हेम्नो भारशतानि वा मदमुचो वृन्दानि वा दन्तिनां श्रीहर्षेण समर्पितानि कवये बाणाय कुत्राद्य तत् । या बाणेन तु तस्य सूक्तिनिकरैरुङ्किताः कीर्तयस्ताः कल्प प्रलयेऽपि यान्ति न मनाङ् मन्ये परिम्लानताम् ॥ सारसमुच्च, सुभाषितावली १५० ॥ ४. श्रीहर्षो विततार गद्यकवये बाणाय वाणीफलम् ॥ सुभा० ॥ ५. अर्थार्थिनां प्रिया एव श्रीहर्षोदीरिता गिरः । सारस्वते तु सौभाग्ये प्रसिद्धा तद्विरुद्धता ॥ हरिहर [ सुभा० १९]६. सुश्लिष्टसन्धिबन्धं सत्पात्रसुवर्णयोजितं सुतराम् । निपुणपरीक्षकदृष्टं राजति रत्नावली रत्नम् ॥ कुट्टनीमत आर्या ९४७ । हर्षवर्धन रचित तीन कृतियों का पता चलता है - 'प्रियदर्शिका', 'रत्नावली' एवं 'नागानन्द' । इनमें 'प्रियदर्शिका' तथा 'रत्नावली' नाटिकाएं हैं और 'नागानन्द' नाटक है । 'रत्नावली' के कर्तृत्व को लेकर साहित्य-संसार में बहुत बड़ा आन्दोलन उठा है कि इसके रचयिता हषं न होकर धावक थे । इस भ्रम को जन्म देने का श्रेय आचार्य मम्मट को है । इन्होंने 'काव्यप्रकाश' में 'श्रीहर्षादेर्धावकादीनामिव धनम्' नामक वाक्य लिखा है जिसका अर्थ अनेक टीकाकारों ने यह किया कि धावक ने 'रत्नावली' की रचना कर हर्ष से असंख्य धन प्राप्त किया है । इस कथन पर विश्वास कर बहुसंख्यक यूरोपीय विद्वानों ने 'रत्नावली' का रचयिता धावक को ही मान लिया । 'काव्यप्रकाश' की किसी-किसी प्रति [ काश्मीरी प्रति ] में धावक के स्थान पर बाण का भी नाम मिलता है, जिसके आधार पर विद्वान् बाणभट्ट को हो 'रत्नावली' का रचयिता मानते हैं । पर, आधुनिक भारतीय पण्डित इस विचार से सहमत हैं कि तीनों कृतियों [ उपर्युक्त ] के लेखक हर्षवर्धन हो थे । 'कुट्टनीमतम्' के रचयिता दामोदरगुप्त ने स्पष्ट रूप से रत्नावली को हर्ष की कृति होने का उल्लेख किया है । [दे० 'कुट्टनीमतम् आर्या ९४७ ] । १ - रत्नावली- यह संस्कृत की प्रसिद्ध नाटिका है, जिसके अनेक उद्धरण एवं उदाहरण नाव्यशास्त्रीय ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। इसमें चार अंक हैं तथा वत्सराज उदयन एवं रत्नावली के प्रणय प्रसंग का वर्णन है [ दे० रत्नावली ] २ - प्रियदर्शिका - इसका सम्बन्ध भी उदयन के जीवन चरित से है । [ दे० प्रियदर्शिका ] ३ – नागानन्द - इस नाटक में राजकुमार जीमूतवाहन द्वारा गरुड़ से नागों के बचाने की कथा है। इसकी
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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