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________________ हरिवंश पुराण] ( ६७७) [हरिवंश, पुराण गयी है तथा शिव और विष्णु को एक दूसरे के निकट लाने का प्रयास किया गया है। शिव और विष्णु को एक दूसरे की स्तुति करते हुए दिखाया गया है। इसी अध्याय में कृष्ण द्वारा राजा पौण्ड्र के वध का वर्णन है। इसके अंत में महाभारत एवं हरिवंश पुराण की महिमा गायी गयी है। महाभारत में भी इस तथ्य का संकेत है कि हरिवंश महाभारत का 'खिल' या परिजिष्ट है तथा हरिवंश पर्व एवं विष्णु पर्व को महाभारत के अन्तिम दो पर्वो के रूप में ही परिगणित किया गया है । "हरिवंशस्ततः पर्व पुराणं खिलसंज्ञितम् । भविष्यत् पर्व चाप्युक्तं खिलेष्वेवाद्भुतं महत् ॥" महा० ११२।६९ ॥ हरिवंश में भी ऐसे प्रमाण मिलते हैं जिससे पता चलता है कि इसका सम्बन्ध महाभारत से है। 'उक्तोऽयं हरिवंशस्ते पर्वाणि निखिलानि च'। हरि० ३॥२॥ इसके साथ ही अनेक प्राचीन ग्रन्थों में इसे स्वतन्त्र ग्रन्थ के रूप में भी प्रतिष्ठित किया गया है ।जैसे अग्निपुराण में रामायण, महाभारत एवं पुराणों के साथ हरिवंश का भी उल्लेख है। "सर्वे मत्स्यावताराद्या गीता रामायणं रिवह । हरिवंशो भारतं च नव सर्गाः प्रदर्शिताः। आगमो वैष्णवो गीतः पूजादीक्षाप्रतिष्ठया।" अग्निपुराण ३८३१५२-. ५३ ॥ गरुडपुराण में महाभारत एवं हरिवंशपुराण का कथासार दिया गया है। ऐसा लगता है कि उत्तरकाल में हरिवंश स्वतन्त्र वैष्णव ग्रन्थ के रूप में स्वीकार किया जाने लगा था। इस सम्बन्ध में • डॉ. वीणापाणि पाण्डे ने अपने शोध-प्रबन्ध में यह निष्कर्ष प्रस्तुत किया है। "महाभारत विषयक अनेक प्रमाण दो निष्कर्ष प्रस्तुत करते है । पहले निष्कर्ष के अनुसार हरिवंश पुराण महाभारत का अन्तरंग भाग है। द्वितीय निष्कर्ष के परिणामस्वरूप खिल हरिवंश एक सम्पूर्ण वैष्णव पुराण के रूप में दिखलाई देता है। हरिवंश के पुराण पन्चलक्षणों के साथ पुराणों में समानता रखनेवाली कुछ स्मृति सामग्री भी मिलती है। इसी कारण खिल होने पर भी हरिवंश का विकास एक स्वतन्त्र पुराण के रूप में हुआ है।" हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक विवेचन पृ०७ हरिवंश में अन्य पुराणों की अपेक्षा अनेक नवीन एवं महत्त्वपूर्ण तथ्यों का विवेचन है जिससे इसकी महनीयता सिद्ध होती है। इसमें अन्य पुराणों की अपेक्षा कृष्ण के चरित्र. वर्णन में नवीनता है; जैसे 'घालिक्यगेय' नामक वाक्य मिश्रित संगीत तथा अभिनय का कृष्ण चरित के अन्तर्गत वर्णन तथा पिण्डारकतीर्थ में यादवों एवं अन्तःपुर की समस्त रानियों के साथ कृष्ण की जलक्रीडा। हरि० २।८८८९ इसमें बज्रनाभ नामक दैत्य की नवीन कथा है जिसमें बजनाभ की कन्या पद्मावती के साथ प्रद्युम्न के विवाह का वर्णन किया गया है। इसी प्रसंग में भद्र नामक नट द्वारा 'रामायण एवं 'कौबेराभ्भिसार" नामक नाटकों के खेलने का उल्लेख भारतीय नाट्यशास्त्र की एक महत्वपूर्ण सूचना है। हर्टेल और कीथ प्रभृति विद्वान इसी प्रसंग के आधार पर ही संस्कृत नाटकों का सूत्रपात मानते हैं। हरिवंश में वर्णित 'घालिक्य' विविध वाद्यों के साथ गाया जानेगला एक भावपूर्ण संगीत है जिसके जन्मदाता स्वयं कृष्ण कहे गए हैं। "पालिक्यगान्धर्व गुणोदयेषु, ये देवगन्धर्वमहर्षिसंघाः। निष्ठी प्रयान्तीत्यवगच्छ बुराधा,
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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