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________________ हरिवंश पुराण ] [ हरिवंश पुराण अनुष्टुप् छन्द में हुई है । जयद्रथ 'अलंकारसर्वस्व' के टीकाकार जयरथ ( विमर्शिनी टीका ) के भाई हैं । ये काश्मीरनरेश राजा राजदेव या राज के सभा-कवि थे, जिनका शासनकाल १२०४ से १२२६ ई० है । इस काव्य की भाषा सरस एवं सुबोध है। ( ६७६ ) हरिवंश पुराण - हरिवंश पुराण महाभारत का परिशिष्ट कहा जाता है जिसे महाभारत का 'खिल' पर्व कहते हैं । विद्वानों का ध्यान हरिवंश को स्वतन्त्र पुराण मानने की ओर कम गया है। इसका स्थान न तो मठारह पुराणों में ओर न अठारह उपपुराणों में ही स्वीकार किया गया है। मुख्यतः पुराणों की संख्या १८ ही मानी गयी, फलतः हरिवंश को इससे वंचित हो जाना पड़ा। हरिवंश में सभी पौराणिक तत्व विद्यमान हैं । इसीलिए कतिपय पाश्चात्य विद्वानों ने इसे महापुराणों में परिगणित किया है । भारतीय विद्वान् इसे महाभारत का ही अंग मानते हैं। पर, डॉ. विन्टर निरस का कहना है कि 'हरिवंश शुद्ध रूप से एक पुराण है यह बात इससे भी सिद्ध होती है कि बहुधा शब्दश: समान अनेक उक्तियाँ इस संबंध कई पुराणों में उपलब्ध हैं ।" भारतीय साहित्य भाग १, खण्ड २ पृ० १२९ ॥ इन्होंने इसे खिल के अतिरिक्त स्वतन्त्र पुराण के भी रूप में स्वीकार किया है। फकुंहर ने हरिवंश की गणन्त पुराणों में की है तथा इसे बीसव पुराण माना है । ( आउटलाइन ऑफ रेलिजस लिटरेचर ऑफ इण्डिया पृ० १३६ ) हॉपकिंस के अनुसार 'हरिवंश' 'महाभारत' के अर्थाचीन पर्वों में एक है। हाजरा ने रास के आधार पर इसका समय चतुर्थ शताब्दी माना है । 'हरिवंश' तीन बड़े पर्वों में विभाजित है और इसकी श्लोक संख्या १६३७४ है ।. प्रथम पक्षं 'हरिवंश' पर्व कहा जाता है जिसमें ५५ अध्याय हैं। इसके द्वितीय पर्व को विष्णु पर्व कहते हैं जिसमें ८१ अध्याय हैं तथा तृतीय ( भविष्य ) पसं के अध्यायों की संख्या १३५ है । इसमें विस्तारपूर्वक विष्णु भगवान् का चरित्र वर्णित है तथा कृष्ण की कथा एवं ब्रज में की गयो उनकी विविध लीलाओं का मोहक वर्णन किया गया है। इसमें पुराण पंच लक्षण का पूर्णतः विनियोग हुआ है तथा इसका प्रारम्भ सृष्टि की उत्पत्ति से ही किया गया है। इसमें प्रलय का भी वर्णन है तथा वंश और मन्वन्तरों के अनुरूप राजाओं की वंशावलियों तथा ऋषियों के विविध आख्यान प्रस्तुत किये गए हैं। इसमें पुराणों में वर्णित अनेक साम्प्रदायिक प्रसंग भी मिलते हैं; जैसे वैष्णव, शैव एवं शाक्त विचार धाराएँ । हरिवंश में योग तथा सांख्य-संबंधी विचार भी हैं तथा अनेक दार्शनिक तत्वों का भी विवेचन प्राप्त होता है । इसके प्रथम पर्व ( हरिवंश ) में ध्रुव की कथा, दक्ष तथा उनकी पुत्रियों की कथा, वेद और यज्ञविरोधी राजा वेन की कथा, उनके पुत्र तथा पृथु विश्वामित्र एवं वसिष्ठ के आख्यान वर्णित हैं। अन्य विषयों के अन्तर्गत राजा इक्ष्वाकु एवं उनके वंशधरों तथा चन्द्रवंश का वर्णन है। द्वितीय (विष्णु) पर्व में मानव रूपधारी विष्णु अर्थात् कृष्ण की कथा अत्यन्त विस्तार के साथ कही गयी है। इसमें विष्णु और शिव से सम्बद्ध स्तोत्र भी भरे पड़े हैं। भविष्य पर्व में आने वाले युगों के संबंध में इसी पर्व में वाराह, नृसिंह एवं वामन अवतार की कथा भविष्य वाणियां की गयी हैं । अत्यन्त विस्तार के साथ दी
SR No.016140
Book TitleSanskrit Sahitya Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajvansh Sahay
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year2002
Total Pages728
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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